हाले-दिल गैरों से खुलकर के बताया न गया
हाले-दिल गैरों से खुलकर के बताया न गया
ज़ख़्म ऐसा था किसी तरह छुपाया न गया
टूटे रिश्तों में यकीं फिर से जगाया न गया
फ़ासला दरमियाँ दिल के था मिटाया न गया
जो जलाया था कभी प्यार से उसने दिल में
वो मुहब्बत का दिया मुझसे बुझाया न गया
काम आसान नहीं तो कोई मुश्किल भी न था
प्यार दोनों से मगर अपना निभाया न गया
उसने लूटा था मुझे प्यार में अपना कहकर
हाँ मगर शोर कभी मुझसे मचाया न गया
बाँट देंगे हमें इक रोज़ सियासी कमज़र्फ
वक़्त से पहले अगर खुदको बचाया न गया
कोशिशें ख़ूब की ‘माही’ ने मगर हो न सका
दिल का घर चाह के भी फिर ये सजाया न गया
— माही
15 अक्टूबर, 2016