गीतिका/ग़ज़ल

हाले-दिल गैरों से खुलकर के बताया न गया

हाले-दिल गैरों से खुलकर के बताया न गया
ज़ख़्म ऐसा था किसी तरह छुपाया न गया

टूटे रिश्तों में यकीं फिर से जगाया न गया
फ़ासला दरमियाँ दिल के था मिटाया न गया

जो जलाया था कभी प्यार से उसने दिल में
वो मुहब्बत का दिया मुझसे बुझाया न गया

काम आसान नहीं तो कोई मुश्किल भी न था
प्यार दोनों से मगर अपना निभाया न गया

उसने लूटा था मुझे प्यार में अपना कहकर
हाँ मगर शोर कभी मुझसे मचाया न गया

बाँट देंगे हमें इक रोज़ सियासी कमज़र्फ
वक़्त से पहले अगर खुदको बचाया न गया

कोशिशें ख़ूब की ‘माही’ ने मगर हो न सका
दिल का घर चाह के भी फिर ये सजाया न गया

— माही
15 अक्टूबर, 2016

महेश कुमार कुलदीप

स्नातकोत्तर शिक्षक-हिन्दी केन्द्रीय विद्यालय क्रमांक-3, ओ.एन.जी.सी., सूरत (गुजरात)-394518 निवासी-- अमरसर, जिला-जयपुर, राजस्थान-303601 फोन नंबर-8511037804