जीवन के कोरे काग़ज पर…
जीवन के कोरे काग़ज पर कोई गीत ग़ज़ल लिखता हूँ।
कम होती साँसे लिखता हूँ बीत रहा पल पल लिखता हूँ॥
अपनों ने कुछ दर्द दिये है और जमाने के कुछ ग़म है।
कुछ मुस्काने भी लिखता हूँ कुछ आँसू बेकल लिखता हूँ॥
रोज नयी सुबहा होती है रोज एक दिन ढल जाता है।
कुछ बीते कल के किस्से कुछ आने वाला कल लिखता हूँ॥
गैरो ने जो ज़ख्म दिये है उनकी पीडा तो कम है।
अपनो ने जो साथ किये है मैं वो अनगिन छल लिखता हूँ॥
गिरती दीवारों पर टूटे से छप्पर का छोटा सा घर।
लोग इसे कुटिया कहते है मैं तो शीश महल लिखता हूँ॥
दाग बहुत है दौलत वालों के उजले उजले दामन पर।
मै लेकिन मेरे दामन को उज्जवल से उज्जवल लिखता हूँ॥
चहरे पर चहरा है उनके क्या कोई पहचान करेगा।
उनकी सूरत उनकी सीरत दोनो को ही छल लिखता हूँ॥
सतीश बंसल