ग़ज़ल
किस तरह बेहतर उसके ख्यालात होंगे
जख्म भींगे हुए, दर्द भरे हालात होंगे
दुआ सलाम से भी लोग नजरें चुराने लगे
जरा सोचिये तो दिल में कैसे जज्बात होंगे
रवां दवां यहाँ नुमाइश का ऐसा सिलसिला
काबिल ए कबूल किस तरह मामलात होंगे
गुम होता गया सब कुछ सैलाब के जद में
देखकर यह तमाशा कैसे तसव्वुरात होंगे
करने लगा हूं अब तो आईने से ही मैं सवाल
अब और जहाँ में कैसे-कैसे खुराफात होंगे
— डा तारिक असलम तस्नीम, पटना