जमानत
मुहब्बत इनायत शराफ़त लिखूँ ।
इजाज़त कयामत नज़ाकत लिखूँ ।
नकाबिल मुसाफिर दिवाने सखे ,
नतीजा नजाफत ज़ियारत लिखूँ ।
फरियाद फितरत उनकी नज़र का,
खजालत नहीं क्या न ताक़त लिखूँ ।
बग़ावत बिगुल बदनसीबी हुई ,
मदन प्रेम कैसी कहावत लिखूँ ।
परीवस पसीना बहाते रहे ,
अमानत तस्व्वुर जमानत लिखूँ ।
— राजकिशोर मिश्र ‘राज’