नवगीत : बैठ अनाड़ी
चाय-पान की गुमटी डाले
हरिया अपने बच्चे पाले
बेच रहा है पान-सुपाड़ी
गप्प लड़ाए बैठ अनाड़ी
निकला सूरज हुए उजाले
दो पैसे की बढ़ी कमाई
खुश है देखो आज लुगाई
छंटे हैं दुख के बादल काले
— योगेन्द्र प्रताप मौर्य
चाय-पान की गुमटी डाले
हरिया अपने बच्चे पाले
बेच रहा है पान-सुपाड़ी
गप्प लड़ाए बैठ अनाड़ी
निकला सूरज हुए उजाले
दो पैसे की बढ़ी कमाई
खुश है देखो आज लुगाई
छंटे हैं दुख के बादल काले
— योगेन्द्र प्रताप मौर्य