लघुकथा

अनमोल खुशी

 

मैं 2015 में सेवानिवृत्‍त हो गया था. बेटा रूस से मेडिकल की डिग्री ले कर 2012 में भारत लौट आया था. विदेश से मेडिकल की उच्‍च शिक्षा प्राप्‍त करके भारत आने वाले डॉक्‍टर्स को भारतीय चिकित्‍सा परिषद् (एम.सी.आई.) की परीक्षा उत्‍तीर्ण करना तत्‍पश्चा्त् एक वर्ष की इंटर्नशिप करना जरूरी होता है. आते ही उसने भारतीय चिकित्‍सा परिषद् (एम.सी.आई.) की परीक्षा पास कर ली और एक साल की इंटर्नशिप भी कर ली. उसका दिल्‍ली मेडिकल काउसिंल (डी.एम.सी.) में पंजीकरण हो गया. वह पंजीकृत चिकित्‍सक बन गया था. यह पहली खुशी थी. वह चाहता था कि स्‍पेशियलिस्‍ट भी बन जाये, इसलिए पी.जी. की तैयारी भी कर रहा था. आरक्षण और कम्‍पीटीशन के कारण क्‍वालिफाई करने के बावजूद भी उसका पी.जी. में अच्‍छा विषय उसको नहीं मिल पा रहा था. हम चिंतित भी हो रहे थे, मुझे सेवानिवृत्‍त हुए 2 साल हो गये थे। वह दिल्‍ली में ही रह कर निजी अस्‍पतालों में छोटे-छोटे अनुबंध पर चिकित्‍सा सेवा दे रहा था और अपना खर्च निकाल लेता था. अंतत: जून 2016 में उसका भारतीय सशस्‍त्र सेना में मेडिकल ऑफिसर के पद पर चयन हो गया, उसने कहा पापा, मैं सेना में रह कर पी.जी. कर लूँगा, बहुत कोशिश कर ली, आप रिटायर हो चुके हैं, अब मेरा स्‍थाई जॉब करना जरूरी है और वह दिल्‍ली में ही पदस्‍थापित हो गया था. देश की सर्वोच्‍च सेवा में उसकी नियुक्त्‍िा से परिवार गौरवान्वित हो गया था. यह दूसरी खुशी थी. मालूम हुआ कि उसे सेना में ‘कैप्‍टन’ की रैंक मिली है. एक सादा समारोह में सितारा अलंकरण समारोह में उसे कैप, स्‍टार, बैज लगाये गये. उसे सितारा और कैप में सुसज्जित देखना अलौकिक था. यह तीसरी खुशी थी.सेना में सभी औपचारिकता पूर्ण करने के बाद लगभग 3 से 4 महीने के बाद ही पहला वेतन मिलता है, इसलिए बेटे को हर माह खर्च के लिए हम ही मदद करते थे. दिवाली के दूसरे दिन 1 नवम्‍बर को बेटे का फोन आया कि पापा मेरी सेलेरी आ गई है. हमारी खुशी दो गुनी हो गई. यह चौथी खुशी थी. तभी उसने आगे कहा- ‘पापा आपके बैंक खाते में 2 लाख रुपये डाल दिये हैं.’अब वह खुशी चार गुनी हो गई थी. इन अनमोल खुशियों को शब्‍दों में नहीं बाँधा जा सकता था. हमारी तपस्‍या सिद्ध हो गई थी.

डॉ. गोपाल कृष्ण भट्ट 'आकुल'

डॉ. गोपाल कृष्ण भट्ट ‘आकुल’ जन्म तिथिः18 जून 1955, महापुरा, जयपुर, राजस्थान. शिक्षाः एम0काॅम, डी0टी0पी0 (कम्प्यूटर) साहित्यिक यात्राः 1975 से आज तक विभिन्न प्रमुख पत्र पत्रिकाओं में लेख, कवितायें, कहानी, लघुकथायें, गीत, नवगीत, नाटक आदि प्रकाशित एवं कई संकलनों में प्रकाशन। 1993 से 2008 तक लगभग 6000 वर्ग पहेलियाँ अमर उजाला व अन्य प्रमुख समाचार पत्रों में प्रकाशित. प्रकाशित कृतियाँः 1. प्रतिज्ञा (1995)- (1995)- महाभारतीय पृष्ठभूमि पर महानायक ‘कर्ण’ पर आधारित नाटक, 2. पत्थरों का शहर पत्थरों का शहर पत्थरों का शहर (2008)- (2008)- हिन्दी गीत ग़जल और नज़्में, 3. जीवन की गूँज (2010)- (2010)- काव्य संग्रह 4. अब रामराज्य आएगा!! (2013)-लघुकथा संग्रह, 5. नवभारत का स्वप्न सजाएँ (2016) गीत संग्रह 6. जब से मन की नाव चली (2016)- नवगीत संग्रह। प्रमुख संकलनः(कुल 10) 1. श्री मुकेश नादान सम्पादित ‘साहित्यकार-5’ (काव्य संग्रह) में 5 साहित्यकारों में सम्मिलित 2. त्रिलोक सिंह ठकुरैला सम्पादित ‘कुण्डलिया कानन (कुण्डलिया छंद संग्रह). सम्पादनः 13 पुस्तकों का सम्पादन. सम्मान/सम्मानोपाधिः पं0 बृजबहादुर पाण्डेय स्मृति सम्मान (बहराइच), शब्द श्री (उज्जैन), काव्य केसरी, विवेकानन्द सम्मान (कोलकाता), कविगुरु रवीन्द्रनाथ ठाकुर सारस्वत साहित्य सम्मान (कोलकाता), साहित्य श्री, ‘साहित्य मार्तण्ड, साहित्य कला रत्न, साहित्य शिरोमणि, भारतीय भाषा रत्न (भागलपुर) , साहित्य मनीषी, कलम कलाधर, शब्द भूषण (उज्जैन), हिन्‍दी साहित्‍य भूषण (साहित्य मंडल, नाथद्वारा), सामाजिक संस्‍था 'तैलंगकुलम्', जयपुर द्वारा प्रेमचन्द्र गोस्वामी स्मृति सम्मान (जयपुर) और अखिल हिन्‍दी साहित्‍य सभा (अहिसास), नाशिक द्वारा विद्योत्‍तमा साहित्‍य सम्‍मान, 2016. अधिकृत उपाधिः विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ, भागलपुर (बिहार) से विद्या वाचस्पति. सम्प्रतिः राजस्थान तकनीकी विश्वविद्यालय, कोटा से अनुभाग अधिकारी के पद से 30 जून, 2015 को सेवानिवृत्त, स्वतंत्र साहित्य यात्रा में संलग्न. वर्तमान में नवम्बर 2010 से ई-पत्रिका ‘अभिव्यक्ति’ (http://abhivyakti-hindi.org) एवं अक्टूबर 2015 से राजस्थान पत्रिका के सांध्य दैनिक (जयपुर) ‘न्यूज टुडे’ में हिन्दी वर्गपहेली निरन्तर प्रकाशित. स्थाई निवासः ‘सान्निध्य’, 817, महावीर नगर-2, कोटा (राजस्थान)-324005, भारत. ईमेलः [email protected] ; [email protected] ब्लाॅगः http://saannidhya.blogspot.com दूरभाष/मोबाइल: 0744-2424818/09462182817