लघुकथा

हार

विकास बड़बड़ाता हुआ बाहर निकला उसे काफी गुस्सा आ रहा था. इतनी qualification और track record के बावजूद उसे नौकरी नहीं मिल रही थी.स्कूल से लेकर कॉलेज तक अवल नबर फिर MBA और internship में इतने उम्दा reviews मिले थे पर नौकरी नही मिल रही थी. बाहर धूप बोहोत तेज़ थी,वो ऑफिस के बाहर वाली बेंच पर बैठ गया हालाँकि वो अपनी कार में ऐसी चला कर भी बैठ सकता था पर उसका मूड नहीं था कही जाने का. ये उसका दसवां इंटरव्यू था. उसे डर लग रहा था की पापा का फ़ोन आने पर उनसे क्या कहेगा और अब उसे पापा की दूकान पर ही बैठना पड़ेगा और बोर होना पड़ेगा.

उसने देखा सड़क के किनारे खुदाई का काम चल रहा था. कुछ मज़दूर काम कर रहे थे और उनके बच्चे एक सामान ढोने वाले रिक्शे से खेल रहे थे. इतनी धूप में भी उन मज़दूरों और उनके बच्चों के चहरे पर कोई शिकन न थी. रिक्शे में चार -पांच बच्चे बैठे हुए थे और एक तीन-चार साल का बच्चा रिक्शे को धक्का दे रहा था.पहले विकास को लगा शायद वो उन्हें झूला रहा है पर उसने गौर किया की रिक्शे का एक पहिया गड्ढे में था और वो लड़का उसे निकलने की कोशिश कर रहा था. बाकि सभी बच्चे चिल्ला चिल्ला कर उसका उत्साह बढ़ा रहे थे. विकास को लगा उसे उस बच्चे की मदद करनी चाहिए तभी एक मजदूर खड़ा हुआ और बच्चों को प्यार से डांट कर चला गया. काफी देर हो गयी थी और गर्मी बढ़ती जा रही थी पर वो बच्चों को देख रहा था. बच्चा बोहोत ज़ोर लगा रहा था पर उससे पहिया नहीं निकल पा रहा था.

विकास को उस बच्चे पर दया आने लगी वो खड़ा हुआ और उस बच्चे की तरफ जाने लगा तभी अपना पूरा ज़ोर लगाकर पहिया गड्ढे से बाहर निकाल दिया. सभी बच्चे ख़ुशी से चिल्ला उठे और तालियां बजने लगे. वो लड़का पूरी तरह पसीनो से लतपथ था पर उसके चहरे पर जीत की ख़ुशी थी. उसके चहरे पर जीत की ख़ुशी थी और एक अजीब गौरव झलक रहा था. विकास ये देख कर सन्न रह गया.एक छोटे से बच्चे ने उससे ज़िन्दगी का वो सबक सिख दिया जो उसे शायद ही कभी मिल पाता. विकास अपने आप को उस बच्चे के आगे बोहोत छोटा और हार हुआ महसूस कर रहा था. विकास ने दौड़ कर बच्चे को गोद में उठा लिया और पास वाली दूकान से बोहोत सारा खाने-पिने का सामान बच्चों में बाँट दिया. विकास को अपने आप में कुछ बदला हुआ सा महसूस हो रहा था. अब उसके चहरे पर ख़ुशी थी.ये ज़्यादा ज़िंदा और कोई और विकास था.

अंकित शर्मा 

अंकित शर्मा 'अज़ीज़'

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