गीत : वे आठ कमीने याद रहे
(भोपाल जेल से भागे आतंकियों की मुठभेड़ पर सवाल उठाने वाले नेताओं को जवाब देती आम हिंदुस्तानी के जज़्बात से भरी मेरी नई कविता)
थे जिनके नाम कई बलवे, जो विस्फोटों के नायक थे
जो तालिबान के पोषक थे, जो चरमपंथ के गायक थे
जिनको नफरत थी भारत से, मुद्दा था खून बहाने का
था घृणित इरादा, इस्लामी परचम हरसूँ लहराने का
ससुराल समझ कर जेलों में जो अपना डेरा डाले थे
ये बात अलग है वो सारे, बस टोपी दाढ़ी वाले थे
इन टोपी दाढ़ी वालों से, बतलाओ क्या शुभ काम हुए?
कितने हमीद हमने पाये, इनमें से कौन कलाम हुए?
इनमे से कितने लोगों के दिल में भारत माँ रहती थी?
कितनो के दिल में प्यार अमन की पावन गंगा बहती थी?
ये केवल काले कतरे थे, आतंकवाद की स्याही का
जो गला रेत कर भागे थे, ड्यूटी पर खड़े सिपाही का
भारत माता की छाती पर ये खड़े विषैले गन्ने थे
सच तो यह था, ये सब के सब दहशतगर्दी के पन्ने थे
जिसकी जड़ में गद्दारी हो, वो पेड़ उखाड़ा जाएगा
जिसमे भारत का नाम नही वो पन्ना फाड़ा जाएगा
भोपाल गवाही देता है, तेवर बदले हैं खाकी के
यह तो केवल शुरुआत कहो, नंबर आने हैं बाकी के
ट्रायल पर ट्रायल चलते हैं, बरसों से रोज अदालत में
कितने आतंकी मस्त पड़े हैं बिरियानी की दावत में
माना थी कमी सुरक्षा में, वो जेल तोड़ कर भागे थे
यह सिद्ध हुआ जो भागे थे, वो सचमुच बहुत अभागे थे
उन भागे हुये दरिंदों को, वापस किस तरह बुलाना था?
खाकी पैरों में गिर जाती?या क्षमा पत्र दिखलाना था?
जो करते बात सरेंडर की, वो बकते ऊल जुलूल गए
ये आठ कमीने याद रहे, उस रमाकान्त को भूल गए
भोपाल पुलिस की जय बोलो, अपनी प्लानिंग आज़ाद रखी
जब दिखे दुष्ट आतंकी तो, यादव कुर्बानी याद रखी
लेना देना कुछ हमें नही, मुठभेड़ असल या नकली थी
जो मरे सभी आतंकी थे, यह बात सरासर असली थी
ये कवि गौरव चौहान कहे, क्या असली-नकली कहते हो
वो मारकाट पर अड़े खड़े, तुम निति नियम में रहते हो
कानून अगर “दो” कहता है तो अपनी रखिये “डेढ़” सही
ऐसे ही मरते हैं पापी, तो फिर फ़र्ज़ी मुठभेड़ सही
है पता हमें, ये दिग्गी, ये ओवैसी भौंके जाएंगे
आतंकी खुले नज़र आएं, ऐसे ही ठोंके जायेंगे
— कवि गौरव चौहान