गीतिका/ग़ज़लपद्य साहित्य

रंग

दिल  की  हर  गली  तंग  लगती   है
बिन तेरे दुनिया बड़ी बेरंग लगती है

बर्फ पे पसरी मखमल सी चादर है
तेरी हंसी बोहोत खुशरंग लगती है

जबसे तूने छुआ मोहोबत से
रूह  मेरी  खुदरंग  लगती है

तेरी आमद से गुलशन में बहार आयी है
वर्ना दुनिया इक अजीब जंग लगती है

क्या मैं अकेला दीवाना हूँ उल्फत में
मुझे तो सारी फ़िज़ाएं मलंग लगती हैं

अंकित शर्मा 'अज़ीज़'

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