कोरे विचार
पंडाल खचाखच भरा था. आचार्य जी भागवत कथा कह रहे थे. कथा के बीच में ज्ञान से भरी बातें भी बता रहे थे. सभी ध्यान से सुन रहे थे.
श्रोताओं में एक बुज़ुर्ग दंपति भी थे. अगले माह वह अपने वैवाहिक जीवन के पचासवें वर्ष में प्रवेश कर रहे थे. पत्नी के मन में विचार आया कि क्यों ना इस शुभ अवसर पर भागवत कथा कराई जाए. पति भी उनके सुझाव से सहमत हो गए. किसी ने बताया कि इस सिलसिले में आचार्य जी के शिष्य से मिलें.
आचार्य जी के शिष्य ने उनकी डायरी देखते हुए कहा “जो तारीख आप बता रही हैं उस पर तो आचार्य जी का कार्यक्रम निश्चित है. किंतु आप एक महत्वपूर्ण अवसर पर कथा कराना चाहती हैं तो यदि आप तय फीस से दस प्रतिशत अधिक देने को तैयार हों तो उस समय आपके यहाँ कथा हो सकती है.”
दंपति ने उन्हें नमस्कार किया और चुपचाप वहाँ से चले गए.