गरीबी
गरीबी की आज तड़प कौन जाने
इन्हें देखकर कौन आज पहचाने
सड़को पर अपनी ये बस्ती बनाये हैं
खुले आसमानों में चूल्हा जलाएँ हैं
नहीं है इनका कोई ठौर ठिकाना
चिलचिलाती धूप में ये झुग्गी बनाये हैं
बिताते हैं जीवन कठिनाई से अपना
उन्हें ना पता है भविष्य कोई अपना
कभी भोजन करते बिन भोजन रहते
हर मौसम में रहने का जगह बदलते
बरसात में बैठकर रातें बिताते हैं
जाड़े में ठण्डी से खुद टकरा जाते हैं
गर्मी में आसमानों को चादर बनाते हैं
सड़क किनारों को चारपाई बनाते हैं
गरीबी से खराब कोई चिज ना होती
समाप्त करने की कोई चर्चा ना होती
@रमेश कुमार सिंह /28-07-2016