उन्ही के ख्यालों में
डूबा हूँ उनके ही ख्यालों में
जाने क्यों
अजीब सी लालिमा है गालों में
लटें उलझी हैं शायद बालों में
दुखी होता है मन यह सोच सोच के
जाने कब मिलना होगा
दिनों, माहिनो या सालों में
बस इसीलिए
डूबा हूँ उनके ख्यालों मे
कभी लगता है
वो नही मेरी किस्मत की लकीरों में
गिनती होने लगी
अब तो अपनी भी फकीरों में
देखता हूँ हर घड़ी सिर्फ उन्हीं को
दीवारों में, दरवाजो में या टंगी तस्वीरों में
ये सोचकर
की शायद तरस आ जाएं किस्मत को
हमारे हालों में
न सुध है दिन की
न होश है रात का
नाम लिखते हैं उन्ही का रूमालों में
मत रोकना कोई हमे
क्योंकि मैं
डूबा हूँ उन्ही के ख्यालों में