मुक्तक/दोहा

“दोहा”

आर पार की खेलते, शेष रही जो खेल
लुक्का छिप्पी हो गयी, मन में पाके मैल॥
सौ सुनार की ठुकठुकी, इक लुहार का छैल
आभा आभूषण घटे, फलित नहीं यह गैल॥
देख नमूना आँख से, आर पार का सार,
तहस नहस किसका हुआ, चाल हुई बेकार।।
बदले में जलते रहे, तेरे भी घर बार
मंशा न नापाक करो, कायर कपटी यार।।

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ