कविता

हे गंगा मैया

हे गंगा मैया , तुझे प्रणाम !
देश – विदेश से लोग हैं आते
सुन – सुन तेरा नाम
पावन तेरा पानी मैया
आये सबके काम
छोटे – बड़े सबका ही प्रणाम l
उगता सूरज करे नमन तुझे
डूबते सूरज की राम – राम
तेरा जल करने को ग्रहण
लगे न कुछ भी दाम
पानी तेरा पीकर मैया
मिलता सबको जीवन – दान l
उत्तमता की पहचान भी तू है
पावनता में है तेरा नाम
कट जाते हैं पाप यहाँ पर
आ जाती है सबमें जान
मन में सबके श्रद्धा जागती
तू इस जगती का है मान l
शाश्वत है तू पावन गंगे
तर जाते हैं सब उजले – गंदे
धंधे करते हैं जो भी बंदे
उज्ज्वल करती कर्म वो मंदे
तेरा जल है अमृत – समान
सबके मन में तेरा सम्मान l
सर्वेश्वर सब तुझे जानते
सब जन गुण तेरे जानते
काल – अधीन जो हो जाये तो
तेरे जल में उसे तारते
जग में तू पावन है महान
हे गंगा मैया , तुझे प्रणाम l

— रवि रश्मि ‘अनुभूति’