मुक्तक/दोहा

कुछ मुक्तक …..

1)

बेकरारी की तपन हमको जलाकर रख दिया ।
और हमसे ही हमें तुमने चुराकर रख दिया
नींद भी आती नही है लाख कोशिश की मगर
चैन मेरा मुझसे तुमने क्यूँ छुपाकर रख दिया।

2)

आपने इक ख्वाब मेरा यूँ गिरा क्यूँकर दिया
झील सी माफिक थी आँखे क्यों बना निर्झर दिया
कब तलक रखते सँभाले दर्द को सीने में हम
जख्म की इक आह ने हमको बना पत्थर दिया

3)

जिंदगी को यूँ बिताना चाहिये ।
फूल बन बस मुस्कराना चाहिये ।
दौर-ए-गर्दिश भी अगर हो सामने ।
सामना करके दिखाना चाहिये ।

4)

किया था प्यार का वादा भुला देते हो तुम अक्सर
नजर में बन्द करके क्यों गुमा देते हो तुम अक्सर
कभी हम देखते खुद को कभी खुद को भुला देते।
मेरे जज्बात को दिलबर रुला देते हो तुम अक्सर ।

5)

पुरुरवा जो तुम गये बन उर्वशी तो मैं बनूँगी ।
प्रेम के मकरंद तेरे मीत चल तो मैं सनूँगी ।
जब अधर चूमे जो तुमने फूल बन खिलने लगे ये ।
रातरानी बन पिया हम बाँह में तेरे झरूँगी ।

6)

खींचता तेरी तरफ है,बो कसक वो प्यार तेरा ।
चारसू साया नज़र को आ रहा दीदार तेरा ।
रूठ कर बैठा कहां तू इल्म क्या तुझको नहीं ।
धड़कनों पर नाम तेरा साँस पर अधिकार तेरा ।

7)

लो हो खफा गये है ,हमसे हमारे दिलवर
मुँह मोड़ के चले है,हमसे हमारे दिलवर
जो हो गयी खता हो, तो माफ़ कर दो जाना
क्यों मौन हो छले है, हमसे हमारे दिलवर।

8)

काँटो भरे है रस्ते, आसां नही मुहब्बत
पलटेे जो पासे किस्मत,भूले वही मुहब्बत
मत पूछ हाल मेरा, ,क्या से हुआ है क्या अब
जज्बात हारे दिल में, होती कहीं मुहब्बत

9)

इजहार कैसे करते आती हया है भारी
समझे नही मुहब्बत जो है अभी भी जारी
तुझको सुनाई देती आवाज काश दिल की
होते नही जुदा तुम बीते न रात सारी।

10)

छूकर गयी वफ़ाएं लो लव भी खोल डाले ।
जंजीर तोड़ डाली टूटे सभी हैं ताले ।
तुम पढ़ सके न आँखें बढ़ती गई यूँ धड़कन
अहसास तुमको हो गर आकर गले लगा ले

11)

सुलगते ही रहे हम तो तुम्हारी चाह में हारे।
नही अहसास है उनको निगाहों से गये मारे।
कभी वो देखते मुड़ के कभी खामोश रहते वो
तुम्हारी याद में भूले समंदर पीर के सारे।

12)

बुझाते हो पहेली सी न आये बाज तुम अब तक ।
कहो दिल में रखे हो क्या छुपाये राज तुम अबतक
कभी बन गूंजते गुंजन कभी खामोश हो जाते
दबा के दिल में कुछ बातें गिराते गाज तुम अब तक।

13)

तोहबतें हम पर लगाकर वो शिकारी हो गए
पोल जब खुलती गयी तो खुद भिखारी हो गए
नोट की जो गड्डियां थीं दे गयीं उनको दगा
गु्लक्कों को तोड़ कर चिल्लर फरारी हो गए।

14)

न मस्जिद मिला न शिवाला
दिए इश्क़ का वो हवाला
चले ही गये छोड़कर यूँ
गले कैसे’ उतरे निवाला।

15)

मुहब्बत आजमाने तुम चले आओ
दिले- दिलवर बनाने तुम चले आओ
कभी करना नही कोशिश भुलाने की
करो कुछ तो बहाने तुम चले आओ।

16)

बात वो करता रहा कुछ इसतरह
गैर था अपना लगा वो जिस तरह
करवटें बदली अचानक वक़्त ने
अब न दिखता वो गया है किस तरह

17)

गमों से हो गयी बंदिश नजारे हम किधर देखें
बसर हो ज़िन्दगी कैसे पड़े फांके जिधर देखें
बसाया था परिंदे ने कभी जो घोंसला अपना
शिकारी ताक में बैठा उजाड़ा घर उधर देखें।

18)

नजर हटती नही तुझसे नजारे हम किधर देखें

बसर हो ज़िन्दगी कैसे पड़े फांके जिधर देखें
बसाया था परिंदे ने कभी जो घोंसला अपना
शिकारी ताक में बैठा उजाड़ा घर उधर देखें


 

गुंजन अग्रवाल

नाम- गुंजन अग्रवाल साहित्यिक नाम - "अनहद" शिक्षा- बीएससी, एम.ए.(हिंदी) सचिव - महिला काव्य मंच फरीदाबाद इकाई संपादक - 'कालसाक्षी ' वेबपत्र पोर्टल विशेष - विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं व साझा संकलनों में रचनाएं प्रकाशित ------ विस्तृत हूँ मैं नभ के जैसी, नभ को छूना पर बाकी है। काव्यसाधना की मैं प्यासी, काव्य कलम मेरी साकी है। मैं उड़ेल दूँ भाव सभी अरु, काव्य पियाला छलका जाऊँ। पीते पीते होश न खोना, सत्य अगर मैं दिखला पाऊँ। छ्न्द बहर अरकान सभी ये, रखती हूँ अपने तरकश में। किन्तु नही मैं रह पाती हूँ, सृजन करे कुछ अपने वश में। शब्द साधना कर लेखन में, बात हृदय की कह जाती हूँ। काव्य सहोदर काव्य मित्र है, अतः कवित्त दोहराती हूँ। ...... *अनहद गुंजन*