कविता

संस्कार

ना स्त्री है ना पुरुष

तो उसे का कहें

मांग रहा था

या

मांग रही थी

जब दोनों नहीं है

तो

दोनों कैसे लगे

खैर

हर जोड़े से वसूली हो रहा था

मानों जोड़े में बैठे होने का

टैक्स भर रहे थे जुगल जोड़ी

बच्चे दस या बीस का नोट

देने के क्यों मजबूर थे

अपने जोड़े में बैठे को

जुर्म समझ रहे थे जो जुर्माना दे रहे थे

मुझे वो जुर्म ही लग रहा था

क्या उस स्थिति में बैठे होना

क्या कहलाता होगा

प्यार इश्क तो कतई नहीं

कहला सकता है

प्रिंसेप घाट (कलकत्ता) में

बेटिकट कई शो

देखने को मिल सकता है

*विभा रानी श्रीवास्तव

"शिव का शिवत्व विष को धारण करने में है" शिव हूँ या नहीं हूँ लेकिन माँ हूँ