आओ लौट चलें
आओ लौट चलें
आ लौट चलें गांव की तरफ ,
जहां न हो कोई भारी भरकम सड़क।
हो जहां सड़क के किनारे ,
नत्थू चाचा के हरे भरे खेत प्यारे ।
मधुर सुखद हवा का झोंका हो,
हो प्यार मुहब्बत, न कहीं धोखा हो ।
श्वेत सुगंधित मीठा सरस पेय हो,. दृष्टिकोण समान हो, न कोई हेय हो ।
घने वृक्षों की शीतल मंद छाया हो,
सब अपने हों, न कोई पराया हो ।
आ लौट चलें गांव की तरफ,
जहां प्रेम से लिखा गया हो हर हरफ।
अम्मा की खटिया और बिछौना हो,
गुड़ की डली,मिट्टी का खिलौना हो ।
चिंता फिक्र से दूर खुली सांसे हो,
ईमानदारी का काम हो न कहीं झांसे हो।
गुल्ली डंडा और कबड्डी का खेल हो,
मनसुख, अमन और आमिर में मेल हो।
सरसों का साग, मक्के की रोटी हो,
चैन की नींद हो दुनिया बहुत छोटी हो।
आ लौट चलें अपने सपनों की तरफ,
जहां प्यार से पिघल जाती हो बरफ ।
मेहनत की मीठी फसल हो,न खटास हो
दिल में नजदिकयों का गर्म अहसास हो।
आ लौट चलें अपने गांव की तरफ,
दुनिया से न्यारे स्वर्ग की तरफ ।
निशा नंदिनी गुप्ता
तिनसुकिया, असम