गीत/नवगीत

बाल दिवस

बाल दिवस का हाल न पूछो, हैं बेहाल सभी बालक ।
चाचा के सब सपने टूटे, मिला नहीं उन सा पालक ।
चिथि चौदहवीं माह नवम्बर, फिर फिर याद दिलाती है ।
मंजिल तक पहुँचे गाड़ी जब, मिलता है अच्छा चालक ।

सजे – सजाये ख्वाब टूटते,बच्चे मागे जाते हैं ।
होटल के जूठे खाने को, मजबूरी में खाते हैँ ।
धूएँ के सँग जीना पड़ता, तथा कथित फैक्टरियों में ।
जीते – मरते रोज बिचारे, आध- अधूरे पाते हैं ।।

दिल्ली इनसे बहुत दूर है, मंगल चंदा सपनों से ।
बात परायों की पूछो, छले गये ये अपनों से ।
कैसे प्रबल भविष्य टिकेगा, इलके जर्जर कंधों पर ।
केवल जीने भर ये पाते, नाप- तौलकर नपनों से ।।

रोटी की चिंता बचपन में, जिनके हिस्से आई हो ।
जिनके कारण ही धनपशु की, होती बहुत कमाई हो ।
बेच रहे जिनके नन्हें कर, खेल – खिलौने रोटी से ।
बचपन में जर्जर के जैसे,मुख पर चिंता छाई हो ।।

फिर भी दम खम भरा हुआ है, इनके नाजुक कंधो पर ।
‘जय भारत’ का मन्त्र गूँजता,स्वाभिमान सम्वादों में ।
बाल दिवस पर भारत माँ की,खाकर करो करो वादा ।
रहे अनाथ न कोई बच्चा, हँसा – खुशी हो यादों में ।।

अवधेश कुमार ‘अवध’

*डॉ. अवधेश कुमार अवध

नाम- डॉ अवधेश कुमार ‘अवध’ पिता- स्व0 शिव कुमार सिंह जन्मतिथि- 15/01/1974 पता- ग्राम व पोस्ट : मैढ़ी जिला- चन्दौली (उ. प्र.) सम्पर्क नं. 919862744237 [email protected] शिक्षा- स्नातकोत्तर: हिन्दी, अर्थशास्त्र बी. टेक. सिविल इंजीनियरिंग, बी. एड. डिप्लोमा: पत्रकारिता, इलेक्ट्रीकल इंजीनियरिंग व्यवसाय- इंजीनियरिंग (मेघालय) प्रभारी- नारासणी साहित्य अकादमी, मेघालय सदस्य-पूर्वोत्तर हिन्दी साहित्य अकादमी प्रकाशन विवरण- विविध पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन नियमित काव्य स्तम्भ- मासिक पत्र ‘निष्ठा’ अभिरुचि- साहित्य पाठ व सृजन