ग़ज़ल
जिंदगी खूब से ख़ूबतर हो गई
चाँद डूबा नहीं पर सहर हो गई ।।1।।
चारसू दिख रहा आज तू ही मुझे
आशिकी इस क़दर मेरे सर हो गई ।।2।।
था यकीं जिसपे धोखा उसी से मिला
जिंदगी मानों ज़ेरो ज़बर हो गई ।।3।।
मर्ज़ ये इश्क़ का है बड़ा ही बुरा
जो दवा भी मिली बेअसर हो गई ।।4।।
वक्त मिलता नहीं गुफ्तगू के लिए
इस क़दर जिंदगी मुख़्तसर हो गई ।।5।।
उसके आने की आहट हुई थी मगर
रास्ता देखते रात भर हो गई ||6||
मंजिलें एक थीं ख्वाब भी एक था
पर ‘रमा’ क्यूँ जुदा ये डगर हो गई ।।7।
रमा प्रवीर वर्मा