लघुकथा

मौन

 

एक बच्चा धीरे से आकर बोला

“मैम मैं कुछ कहना चाहता हूँ । थोड़ा सा समय आपका लेना चाहता हूँ”। वो देख रहा था मैं घर निकलने के लिए जल्दी कर रही हूँ।हम एक काव्य गोष्ठी में मिले

“हाँ हाँ ! बोलो न । मैं सुन रही हूँ”

“जी मैं दहेज का समर्थक हूँ”!

“क्यूँ क्यों भाई” ?

“मुझे लगता है कि अगर मेरे पिता जी के पास एक रुपया ,एक रुपया भी है तो पचास पैसा अगर उतना भी नहीं तो 49 पैसा तो मेरी बहन को मिलना ही चाहिए”।

“बहन से बहुत प्यार करते हो! बहन को हमेशा तौहफा चाहिए । उसे तौहफा देते रहना । किसी दहेज के लोभी को खरीदना नहीं । दहेज के लोभी स्वाहा कर देंगे तुम्हारी बहन को । किसी लड़की का हाथ ; इस लिए नहीं छोड़ देना कि उसके पिता के पास दहेज देने के लिए पैसे नहीं है ।”

“क्या उस लड़की के पिता के पास एक रुपया नहीं होगा । 51 पैसे देने की बात नहीं कर रहा हूँ मैम !”

“क्या तुम्हें लगता है कि 50 पैसा या 49 पैसा ही सही ; लेकर आने वाली लड़की , हर महीने के 15 दिन केवल बेटी बहन बन कर रह सकेगी , पत्नी बहू की मजबूरी से छूट ?

नये साल की ढ़ेरों शुभकामनाओं के संग अभी विदा लेते हैं जब जबाब मिले you call me ।

 

*विभा रानी श्रीवास्तव

"शिव का शिवत्व विष को धारण करने में है" शिव हूँ या नहीं हूँ लेकिन माँ हूँ