गीतिका
लेकर कलम माँ शारदे, आया हूँ तेरे द्वार
लिखता रहूँ मैं गीतिका, देना कलम में धार
हर गीतिका में आपका, करता रहूँ गुणगान
मिलती रहे माँ ऊर्जा, मिलता रहे माँ प्यार
माँगा न मैंने आज तक, जोड़े कभी न हाथ
देखूं कभी जो स्वप्न माँ, होते सभी साकार
जोड़े खड़ा मैं हाथ माँ, पूजूं सुबह ओ शाम
करता रहूँ आराधना, करना उसे स्वीकार
वरदायनी हो आप माँ, ऐसा मुझे दो ज्ञान
दमदार हो माँ लेखनी, हर शब्द में श्रृंगार
पंकज उठाये हाथ में, वीणा बजाती आप
भटकूँ अगर मैं राह से, देना मुझे सुविचार
सद्दभावना मन की रहे, संजय रखो ये ध्यान
तुम शब्द को ऐसा लिखो, जिस पर रहे अधिकार
— संजय कुमार गिरि