” मिलेगें “
दोस्त बस दो चार मिलेगें,
दुश्मन कई हज़ार मिलेेगें!
भूलना चाहा हरदम जिन्हे,
हर मोड पर हरबार मिलेगें!
आंख, मुंह पर पट्टी बांधे,
गूंगे, बहरे दरबार मिलेगें!
कौन नहीं खरीदेगा बोलो,
जो सपने भी उधार मिलेगें!
जाति, धर्म की दुकानों पर,
रिश्ते सरे बाजार मिलेगें!
वहां चल जहां ‘जय’ तुझे ,
कुछ जीने के आधार मिलेगें!
जयकृष्ण चांडक “जय”
हरदा म प्र