कवि और कविता
मनोभाव से क्या कविता का प्रादुर्भाव होता है ? विचार रखने में क्या हम कविता की परिधि में आ सकते हैं ? भावों को स्पष्ट करना, अपनी बात ऊपर रखना मंच -मंच पर टहलना , अपनी रचना थोप देना , दूसरे रचनाकारों की रचना पर भूलकर कभी पसंद प्रतिक्रिया देना क्या यही आपकी कविता का उद्देश्य है । जो दूसरे रचनाकारों की रचना का सम्मान नहीं करते उनका सफरनामा कहाँ तक हिचकोले भर सकता है , यह आने वाला वक्त ही बता सकता है । कवि का धर्म एकला चलो नहीं हो सकता । जहाँ सूर्यदेव की रश्मि अपनी आभा बिखेरने में असमर्थ होती हैं वहाँ कवि की कविता अंधकार का हरण कर ज्ञान रूपी प्रकाश से अभिसिन्चित कर देती है ।
साहित्य लिखना अपने विचारों को कह देना सरल है, लेकिन साहित्य साधना के लिए त्याग चाहिए। विश्व में हिन्दी का परचम लहराने वाले परम आदरणीय प्रो. सरन घई जैसा त्याग चाहिए । यहाँ हम अपने तक सीमित रहते हैं । आभासी दुनियाँ में मशगूल खुद को भूल जाते हैं । नींद से जागते है फिर वही फर्श । अर्श तो स्वप्न में आते हैं , कवि की कल्पनाओं में बह जाते हैं । यहाँ पसंद के बदले पसंद , प्रतिक्रिया के बदले प्रतिक्रिया देकर हम लेन देन करने वाले व्यापारी बन जाते हैं । सोचिए फिर आप कैसे कवि हैं ? व्याकरण , छ्न्द , रस , अलंकार से विमुक्त होते हुए भी संदेशपद कविता मनोभाव को झकझोर देती है । कविता के सृजन का उद्देश्य सामयिक, संदेशपद होना चाहिए ।