लघुकथा

भांड (लघुकथा)

जिले ने गंभीर हो नफे से पूछा, “भाई ये भांड किसे कहते हैं?”
“कोई कलाकार जब स्वार्थवश अपनी कला को बेच देता है तो वह भांड बन जाता है।” नफे ने समझाया।
जिले सिर खुजाते हुए बोला, “भाई मैं कुछ समझा नहीं।”
नफे बोला, “जब कोई व्यक्ति कला के प्रति तन-मन से समर्पित हो उसकी समृद्धि में योगदान देता है तो वह कलाकार कहलाता है।”
“और भांड किसे कहते हैं?” जिले ने उत्सुकता से पूछा।
“जब वही कलाकार चंद सिक्कों के लालच में अपनी कला और ज़मीर का सौदा कर लेता है तो…” इससे पहले कि नफे अपनी बात पूरी करता जिले खिलखिलाते हुए बोला, “तो वह भांड कहलाता है।”
लेखक : सुमित प्रताप सिंह

सुमित प्रताप सिंह

मैं एक अदना सा लेखक हूँ और लिखना मेरा पैशन है। बाकी मेरे बारे में और कुछ जानना चाहते हैं तो http://www.sumitpratapsingh.com/ पर पधारिएगा।