मुक्तक/दोहा

मुक्तक : अगर दो पंख बेटी को

अगर दो पंख बेटी को छुएगी आसमां इक दिन
कहेगा ये जहां सारा इसी की दासतां इक दिन
भरेगी कल्पना जैसी उडानें देखना ये भी
करेगा नाज इस पर देखना हिन्दोस्तां इक दिन

अमन का है चमन इसमें नही अंगार तुम भरना
गुलों से महके दामन में अजी मत ख़ार तुम भरना
दिलों में प्यार का अहसास हो विश्वास हो कायम
गुजारिश है नही नफ़रत दिलों में यार तुम भरना

करोगे मान कर उनका तुम्हें सम्मान देंगे वो
करोगे गर जरा परवाह तुम पर जान देंगे वो
बचाकर तुम बुजुर्गों की अगर पहचान रख लोगे
मेरा दावा है की तुमको नयी पहचान देंगे वो

लहू की बूँद भी अंतिम बहाकर देश की खातिर
लडे जो दाँव पर जीवन लगा कर देश की खातिर
करेगा याद सदियों तक वतन उन नौजवानों को
गये जो भेंट जीवन की चढाकर देश की खातिर

  • सतीश बंसल
    ०३.०२.२०१७

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.