कविता : पलायन
देख शहर की
ऊँची अट्टालिकाएँ,
मस्ती भरा
आलीशान जीवन
लिए आँखों में
स्वप्न सुनहरे
असंख्य करें
शहरों को पलायन ! !
यथार्थ दिखे
सपने ढहें
शहर में जीना
“जीना” न रहे
सुबह – शाम
आपाधापी
दिन रात जीवन
चक्की सा चले !
मुरझाई शक्लें
सहमें – थके से लोग
कभी निराशा
तो कभी आशा की किरण…
खटकाए दरवाजा
चल… निकल मुसाफिर
फिर दूर गगन !
अपने हिस्से का सुख
तलाशने के लिए ! !
अंजु गुप्ता