लेख

मेरी सुबहचर्या

आजकल रात, देर से सोने के कारण सुबह-सुबह उठकर स्टेडियम जाकर टहलना नहीं हो पाता। ऐसा कई दिनों से हो रहा है। लेकिन देर ही सही, जब भी सो कर उठता हूँ तो, अपने आवास के लान टाइप खाली जगह पर दस-बीस चक्कर लगा लेता हूँ…ऐसे ही आज सुबह छह बजे उठकर लान में बीस-पच्चीस मिनट चक्कर लगाने के बाद चाय बनाया, अकसर अपनी चाय मैं स्वयं बनाता हूँ । चाय बनाते-बनाते ध्यान आया कि रात में बनी रोटी-सब्जी में सब्जी मेरे मन की नहीं थी, इसके लिए मैंने देवपाल अप्रकट सी कुछ नाराजगी भी दिखाई थी। खैर…

आज सुबह चाय बना लेने के बाद न जाने क्यों मन में अपने स्वादानुसार खाना बनाने की सूझ पड़ी..वैसे भी पढ़ाई के दिनों में ही कम से कम अपने लिए और कुछ नहीं तो खाना बनाने का शऊर सीख ही लिया था… सो चाय बनाने के तुरन्त बाद खाना बनाने में जुट गया…तुरंत बाद इसलिए कि मन में एक डर यह भी था कि कहीं इस बीच देवपाल (देवपाल ही मेरा खाना बनाता है) आ गया तो वही खाना बनाने लगेगा, इसलिए उसके आने के पहले मैं खाना बना लेना चाहता था। खैर, मैंने दाल, चावल और सब्जी बना लिया था, जब देवपाल आया। देवपाल के आते ही मैंने उससे कहा, “अब तुम खिलाते समय रोटी बना लेना।” इसके बाद मैं, आवास से बाहर निकल आया…

मैंने देखा…मेरे आवासीय परिसर के बाउंड्रीवाल का गेट खुला था, शायद दूधिया दूध देने के बाद गेट को वैसा ही खुला छोड़ कर चला गया था..वह रोज ऐसा ही करता है… मैंने खुले गेट को बंद करना चाहा..लेकिन, तभी देखा..एक कुत्ता परिसर में रखे हुए एक बड़े से कूड़े वाले झोले को गेट से बाहर लिए जा रहा था..एक बारगी मन में आया कि कुत्ते को डांट दे.. क्योंकि, मुझे इस बात का अंदेशा हुआ कि कहीं यह कुत्ता, कूडे़ के थैले में से अपने मतलब की चीज तलाशने के चक्कर में थैले में भरे कूडे़ को गेट के बाहर की साफ-सुथरी जगह पर ही न छितरा दे…वहाँ चौकीदार ने सबेरे-सबेरे ही झाड़ू लगाया था…थैले में भरे रसोईघर के कूड़े को कुछ दूर स्थित कूड़ेदान में फेंकना था, जो ध्यान न जाने से तीन-चार दिनों से आवासीय परिसर में ही पड़ा रहा था…

मैंने, थैला ले जाते हुए कुत्ते को डांटा नहीं, थैला लेकर वह बाहर निकल गया…जिज्ञासावश, कुछ क्षणों बाद मैंने बाहर जाकर देखा…उस थैले को कुत्ता वहीं कूडे़दान पर ही ले गया था जहाँ उसे फेंकना था…थैले को कूडे़ पर रख वह कुत्ता अपने मतलब की चीज तलाश रहा था…कुत्ते की इस जबर्दस्त समझदारी पर मुझे अतीव प्रसन्नता हुई.. सोचा…आखिर..कुत्ते भी समझदार होते ही हैं…अगर मेरे हाथ में मोबाइल होता तो इस कुत्ते की एक तस्वीर ले लेता और इसे स्वच्छता कार्यक्रम का ब्रांड एम्बेसडर घोषित कर इस लेख के साथ चस्पा कर देता…नाहक ही इन बेचारों को गली-मोहल्ले से लेकर संसद तक मजाक का विषय बनाया जाता है…शायद इतनी समझदारी हममें नहीं है…वैसे अपने स्वभावानुसार सभी समझदार होते हैं, और जो समझदार होते हैं वे समझते हैं..अकसर समझदार लोग समझने की बखेड़ेबाजी में नहीं उलझते..! खैर..

इसके बाद अखबार आ गया था, अखबार में एक लेख “एक अफसाना भर नहीं पद्मावती” पढ़कर अच्छा लगा…इस लेख में लेखिका प्रश्न उठा रही है कि, “क्या 21शताब्दी में भी प्रेम में नारी की सहमति की महत्ता किसी को समझ नहीं आती? नारी को भोग की वस्तु समझना और उसपर अधिकार पाने की चाह रखना किसी प्रकार का प्रेम नहीं होता।…सदियों तक समाज को अपनी सहमति का महत्व नहीं समझा पाई है।” खैर…

आज जब सोशल मीडिया पर देखता हूँ तो, अकसर कवियों या गजलकारों की प्रेम-रस-सम्पृक्त प्रेमाभिव्यक्ति के साथ किसी न किसी महिला की खूबसूरत तस्वीर चस्पा दिखाई देती है। हो सकता है, कुछ मामलों में यह तस्वीर कवि की प्रेरणा की ही हो। लेकिन अधिकांश ऐसी तस्वीरें उस पोस्ट को आकर्षक बनाने के उद्देश्य से साथ में चस्पा की हुई होती हैं, जहाँ तस्वीर में दिखाई देती महिला की सहमति प्राप्त नहीं होती…. वैसे यह समाज है, कुछ हद तक यह हम पर भी निर्भर करता है..कि हम क्या देखें या क्या न देखें.. और.. यदि तस्वीर है तो देखनेवाले देखेंगे ही…लेकिन…

…यूँ ही, किसी स्त्री की सहमति के बिना उसकी किसी तस्वीर को अपनी कविता या गजल के साथ चस्पा कर देना उस स्त्री की गरिमा के विरुद्ध होता है…यह कवि की कोमल भावनाओं का नहीं, अपितु पुरुषवादी मानसिकता का दिग्दर्शन है।

एक बात और, कवि की प्रेम-कविता की प्रेरणा कोई और हो और तस्वीर किसी और की चस्पा हो..! तो क्या यह प्रेम-भावना का माखौल नहीं है..? और, कम से कम यह अपने साथी का अपमान भी है। प्रेम की अनुभूतियों में मनोरंजन नामक तत्व नहीं होता..!!

यह मेरी सुबहचर्या थी।

*विनय कुमार तिवारी

जन्म 1967, ग्राम धौरहरा, मुंगरा बादशाहपुर, जौनपुर vinayktiwari.blogspot.com.