लघुकथा

भूख का इलाज

डॉक्टर माथुर अपनी क्लिनिक का दरवाजा बंद करने के लिए क्लिनिक से बाहर निकले । दोपहर का एक बज रहा था । क्लिनिक बंद करके नित्य की भांति उन्हें अपने घर पर भोजन करने के लिए जाना था । सभी मरीजों को वह पहले ही निबटा चुके थे । बाहर निकलते ही एक गन्दा सा मैले कुचैले कपडे पहने पांच साल का अनाथ गोलू उनके कदमों में झुक गया । सहृदय डॉक्टर माथुर उसकी अवस्था देखकर द्रवित हो गए और उससे पुछा ” क्या बात है बेटा ? कुछ तकलीफ है ? ”
उस नन्हें से बच्चे ने अपनी मुट्ठी में दबा हुआ दस रुपये का एक नोट माथुर की तरफ बढ़ाते हुए कातर स्वर में बोला ” डॉक्टर साहब ! मुझे भूख बहुत लगती है । क्या आपके पास कोई दवाई है जिससे भूख ही न लगे ? “

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।