लघुकथा

“गजब संयोग”

प्रयाग माधव माँ गंगा व त्रिवेणी संगम की पावन डुबकी से सराबोर होकर, वापसी की यात्रा शुरू हुई। प्रयाग मुड़ाये, गया डड़ाये……जितने भी पुरुष साथी थे सबका मुंडन हो गया था। मोटरी गठरी, प्रसाद की थैली व गंगा जल को सीने से लगाए हुए लोग अपने अपने घर पहुँचना चाहते थे ताकि थकान उतार कर फसल को भी डुबकी लगवायी जा सके। कइयों के वहाँ तिलक, शादी और यज्ञोपवीत का संस्कार भी था। सुबह से सड़क पर दौड़ती हुई गाड़ी भागे जा रही थी दोपहर हो चूका था, खाली पेट और खाली पाकिट, जल्दी घर पहुँच कर सिझे हुए भोजन की आस लगाए हुए थे। जिला जौनपुर का बोर्ड दिखा तो किसी ने कहा कि अब कुछ चाय पानी और नास्ता हो जाय तो ठीक रहेगा, सबने एक स्वर में इसका अनुमोदन किया और तय हुआ कि आगे किसी अच्छे होटल पर रुका जाय। सबकी निगाहें किनारे के दुकानों को घूरने लगी ताकि जल्दी कुछ पेट पूजा हो जाय पर नशीब को कुछ और ही मंजूर था।
कुछ आगे चलने पर हाइवे के किनारे एक पुलिस चौकी पर कई गाड़ियों को एक साथ खड़ी देखकर लगा कि कुछ अनहोनी हो गयी है कि कान में जोरदार आवाज पड़ी…..ऐ….. रोक….. गाडी रोक…..साला…..सीट बेल्ट नहीं लगाता है……साइड में लगा गाड़ी…..कागज दिखा……हाँ साहब……दिखाता हूँ…….ड्राइबर ने गाडी के सारे कागज दिखा दिए…..कोई कमी नहीं थी…..सब ठीक था……जा साहब से मिल ले…….ड्राइबर, इंस्पेकटर साहब के पास गया और वापस आकर बोला, 500 रूपया देना पड़ेगा नहीं तो चालान हो जाएगी। मैंने पूछा, बिना गुनाह के चालान, क्या बात है…..। मैं साहब के पास गया और इतना ही बोला सर…..इतने में साहब आग बबूला हो गए और चिल्लाए…..भाग यहाँ से…..लगा कि मुझे हाथ लगा ही देंगे…..क्या करता दो कदम पीछे हट गया और मेरा आई कार्ड मेरे हाथ में रह गया जिसपर मुझे नाज है कि मैं भी केंद्र सरकार का अधिकारी हूँ और हर वर्ष पचासों हजार टैक्स देता हूँ, टोल टैक्स और न जाने कितने प्रकार के टैक्स से रूबरू होता हूँ। कोई गलत काम नहीं करता, किसी से गलत पेश नहीं आता…..इतना अधिकार तो बनता है कि निरपराध होने के बावजूद अपने ही घर में बेइज्जत न होऊं…….दूर खड़ा होकर अपमान की पीड़ा महसूस कर रहा था कि साथ के एक अनुज ने जौनपुर में ही पोस्टेड अपने गाँव के एक बड़े पुलिस अधिकारी को फ़ोन लगा दिया और हमारी गाडी छूट गई…..न चालान हुई न पांच सौ रुपया लगा, पर कइयों ने पांच सौ कुर्बान करना ही उचित समझा……हतप्रभ रह गया और उत्तर प्रदेश को नमस्कार कर उस गिरे हुए पुलिस इंस्पेक्टर को गिरी नज़रों से देखने लगा…….किसी ने कहा चुनाव है भैया….. वसूली हो रही है कुछ दिन बाद जनता से फिर वोट की वसूली होगी……यही यहाँ की सुपर ब्यवस्था है……चिंता छोडो और घर चलो…….हा हा हा हा हा….. वो रही दूकान गरम समोसे और चाय वाली……दूकान की बात, अबकी बार नवकी बहार……

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ