“जीवन आशातीत हो गया”
जो लगता था कभी पराया,
जाने कब मनमीत हो गया।
पतझड़ में जो लिखा तराना,
वो वासन्ती गीत हो गया।।
अच्छे लगते हैं अब सपने,
अनजाने भी लगते अपने,
पारस पत्थर को छू करके,
रिश्ता आज पुनीत हो गया।
मैंने जब सरगम को गाया,
उसने सुर में ताल बजाया,
गायन-वादन के संगम से,
मनमोहक संगीत हो गया।
सुलझ गया है ताना-बाना,
लगता है संसार सुहाना,
बासन्ती अब सुमन हो गये,
जीवन आशातीत हो गया।
—
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)