धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

लेख

वर्तमान में धर्म की सबसे बड़ी विडंबना यही है कि हमने चर्या के विषय को चर्चा के विषय में रूपांतरित कर दिया है। आज धर्म की बातें इतनी हो रही हैं जितनी शायद सतयुग में भी नहीं होती होंगी। प्रतिदिन असंख्य प्रवचन, असंख्य कथाएँ, भजन-कीर्तन हो रहे हैं। धर्मस्थलों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती ही रही है परंतु किसी के जीवन में शांति नहीं है। इसका एकमात्र कारण है कि धर्म की केवल चर्चा हो रही है, मनुष्य की चर्या से धर्म विलुप्त होता जा रहा है। हमारे शास्त्रों ने धर्म को नितांत निजी बताया है। धर्मकार्य जितना एकांत में हो, प्रचाररहित हो उतना ही फलदायी होता है। इसके विपरीत हमने आज धर्म को भी प्रदर्शन की वस्तु बना दिया है। जैसे कोई व्यक्ति अपने ऐश्वर्य का प्रदर्शन करता है ऐसे ही कोई अन्य व्यक्ति अपने धार्मिक कार्यों का यदि प्रदर्शन करने लग जाए तो दोनों में कोई अंतर नहीं रह जाता। ऐसे कृत्यों का कोई लाभ नहीं होता। धर्म का उद्देश्य है आपके अहंकार का नाश करना ताकि मनुष्य स्वयं को उस परमसत्ता का एक अंश मान सके। उसके कर्ता भाव का नाश हो एवं समर्पण भाव का उदय हो। परंतु यदि वो किसी भी धार्मिक कृत्य को केवल प्रदर्शन के लिए करता है तो इससे उसका अहंकार और मजबूत होता है और जो भी कार्य आपके अहंकार को सुदृढ़ बनाता है वो धार्मिक कार्य तो कतई नहीं हो सकता। आवश्यकता मंदिर जाने की या मंदिर बनाने की नहीं है, आवश्यकता है अपने जीवन को मंदिर बनाने की। आप निराहार रहकर उपवास भले ही न करें, ईश्वर का उपवास (निकट वास) करें तो अधिक फलदायी होगा। आप कितनी भी भगवत्कथा सुन लें परंतु यदि आप उसे अपने जीवन में गुनेंगे नहीं तो वो उसी प्रकार व्यर्थ हो जाएगी जैसे उल्टे घड़े पर वर्षा का जल। कितनी भी मूसलाधार वर्षा हो यदि घड़ा ही उल्टा रखा है तो वो बाहर से तो गीला हो जाएगा लेकिन उसके भीतर जल की एक बूंद भी प्रवेश नहीं करेगी एवं वो थोड़ी सी धूप निकलते ही सूख जाएगा। इसी प्रकार यदि आपने धर्म को केवल सुना, अपने जीवन में गुना नहीं तो वो परिस्थितियों की धूप की एक किरण से ही वाष्पीभूत हो जाएगा। इसलिए धर्म को चर्चा से हटाकर चर्या में लाइए। धर्म को केवल एक कृत्य न बनाकर अपनी जीवनशैली बनाइए। तभी आपके जीवन से अहंकार, क्रोध, लोभ, मोह आदि अवगुणों का नाश होगा एवं दया, करूणा, त्याग इत्यादि गुणों का उदय होगा। जिस दिन धर्म इस संसार की जीवनशैली बन जाएगा उस दिन संसार वैसा ही हो जाएगा जैसा इसे होना चाहिए था।
मंगलमय दिवस की शुभकामनाओं सहित आपका मित्र :- भरत मल्होत्रा।

*भरत मल्होत्रा

जन्म 17 अगस्त 1970 शिक्षा स्नातक, पेशे से व्यावसायी, मूल रूप से अमृतसर, पंजाब निवासी और वर्तमान में माया नगरी मुम्बई में निवास, कृति- ‘पहले ही चर्चे हैं जमाने में’ (पहला स्वतंत्र संग्रह), विविध- देश व विदेश (कनाडा) के प्रतिष्ठित समाचार पत्र, पत्रिकाओं व कुछ साझा संग्रहों में रचनायें प्रकाशित, मुख्यतः गजल लेखन में रुचि के साथ सोशल मीडिया पर भी सक्रिय, सम्पर्क- डी-702, वृन्दावन बिल्डिंग, पवार पब्लिक स्कूल के पास, पिंसुर जिमखाना, कांदिवली (वेस्ट) मुम्बई-400067 मो. 9820145107 ईमेल- [email protected]