सामाजिक

शिक्षा माफिया पर लगाम लगे

आज अपने देश में निजी विद्यालय खोलना एक व्यापार और शिक्षा माफिया का अड्डा बन गया है। इसने एक ऐसा रूप ले लिया है जो दहेज प्रथा से भी ऊपर चला गया है। सरकार कीं आखों के सामने मनमाने ढंग से बच्चों के माता-पिता का आर्थिक शोषण हो रहा है और शिक्षा को व्यापार बना दिया गया है। इसके लिए हम भी दोषी हैं जो अपने बच्चों को ऐसे स्कूलों में दाखिला दिलाने के पीछे पागल हो गये हैं। इसको हमने अपना स्टेटस सिम्बल बना लिया है। इसका फायदा ये निजी स्कूल वाले जमकर उठा रहे हैं और हमसे मोटी रकम वसूल कर अपनी जेब गरम करते हैं। सरकार भी वर्षों से इस विषय पर खामोश होकर तमाशा देखती रही है। दूसरा कारण यह भी है कि सरकारी स्कूलों का स्तर दिनों-दिन गर्त मे गिरता चला गया जिसका सीधा फायदा ये निजी स्कूल वाले उठा रहे हैं।
सरकार को चाहिए कि सरकारी स्कूलों के स्तर को सुधारे और ऐसे शिक्षकों को नियुक्त करे जिनमें बौद्धिक क्षमता हो और जो सिर्फ डिग्री ही न रखे हों। वर्ना आज सरकारी स्कूलों मे ऐसे शिक्षकों की भरमार है जो सिर्फ डिग्री का ही चोला पहने हैं। अतः सरकार ऐसे शिक्षकों की पहचान कर उन्हें विरमित करे।
निजी विद्यालयों के लिए सरकार एक पैमाना निर्धारित करे कि नर्सरी से लेकर हायर सेकंडरी तक ऐसे विद्यालय कितना सालाना फीस ले सकते हैं। साथ ही साथ किताबों और ड्रेस के लिए जो ये मनमानी करते हैं इसपे भी अंकुश लगाए।
अपने देश में गुजरात एक ऐसा राज्य है जहाँ ऐसे विद्यालयों के लिए सख्त नियम हैं और उल्लंघन पर दंड का भी प्रावधान है। ऐसा नियम सारे देश के निजी विद्यालयों में लागू होना चाहिए। आज उत्तर प्रदेश की जनता ने ऐसे निजी विद्यालयों की मनमानी के खिलाफ आन्दोलन शुरू कर दिया है। यह आन्दोलन सभी राज्यों में चलना चाहिए।
अगर गहराई में जाएं तो एक सच्चाई आपको देखने को मिलेगी कि ज्यादातर निजी विद्यालयों में भी शिक्षकों को विषयों की जानकारी का स्तर अच्छा नहीं है और बेरोजगारी के तले दबे ऐसे शिक्षकों को ये स्कूल वाले कम पैसों में नियुक्त करते हैं और उन्हें भी शोषित करते हैं। वे बच्चों को पढाते कम हैं, अपनी नौकरी ज्यादा बचाते हैं।
मेरी ये बातें निजी विद्यालयों के प्रबंधकों को नागवार लगेंगी, पर वे जरा सोचें कि क्या नैतिकता और मानवता के दृष्टिकोण से यह सही है?