सामाजिक

ब्रा के स्ट्रैप देखकर मेरी कोई भी नसें नहीं तनती हैं, बहन !

‘ब्रा के स्ट्रैप देखकर तुम्हारी नसें क्यों तन जाती हैं, भाई ?’
फेसबुक पर ”सिंधुवासिनी त्रिपाठी जी” की लंबी वार्त्तालापीय-शीर्षक लिए यह पोस्ट काफी शेयर किये जा रहे हैं।
सम्बंधित आलेख का सम्पूर्ण भाग पढ़ा, मैंने ! आपने इस आलेख में सिर्फ प्रश्न-प्रतिप्रश्नों की बौछारे की है और जवाब नदारद है यानी सटक-सीताराम ! एक का भी आपने जवाब नहीं दिया है। ऐसे में यह सिर्फ किसी प्रतियोगिता परीक्षा के लिए फख्त ‘सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी’ भर रह जाता है ।

चलिये , मैं भी कुछ पूछ लेना चाहता हूँ आपसे ! आप किसप्रकार की नसें तनने की बात कर रही हैं, क्योंकि शरीर में नसों की संख्या तो अनगिनत है ! लोगों को आलेख पढ़ाते-पढ़ाते आखिर आपने खुद की भी सोच बाहर करा ही बैठी… ! ओह, आप तो अंडरवियर के अंदर के ‘नसें’ की बात कर रही हैं ? वह नस, जो मेरे पिता के पास भी है और आप सहित सभी जन्म लेनेवाले प्राणियों के पिता के पास भी होंगे । मैं सहित देश के कई लोग कुँवारे हैं, कई राज्यों के मुख्यमंत्री, कई मंत्री, संतरी, अफसर से लेकर सामान्य जन तक आजीवन कुँवारे रह कर चल बसे हैं । इस देश में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री तक कुँवारे रहे हैं । ऐसे में सभी को एक ही तराज़ू में तौलने की बात कह आप सिर्फ अपनी कुंठा प्रदर्शित की हैं । संत-महात्माओं वाले देश में कइयों के नसें नहीं तनती हैं, बहन । मेरे तो बिलकुल नहीं !

अगर स्त्री-पुरुष शादी करने की इच्छा रखते हैं या संतानोत्पत्ति तक बात पहुँचाते हैं, तो निश्चितश: यहाँ नसें भी तनती हैं और खुजलाहट भी होती हैं । सांसारिक मोह-व्याप्तता में नारी-पुरुष के बीच सेक्स औए एंटी-सेक्स के प्रति आकर्षण स्वाभाविक है । चूँकि इस देह के अंदर हार्मोनिक बदलाव समयावसर होते रहते हैं और वीर्य, मज्जा, उत्तेजना इत्यादि भी भर-भर के होते हैं । चूँकि ‘ब्रा’ पुरुष-पात्र नहीं पहनते, इसलिए इनकी ‘स्ट्रैप’ देखकर नसें तन जाते होंगे, ऐसी ही स्थिति देखकर मेरी माँ की स्ट्रैप देखकर मेरे पिता के कभी होते हुए होंगे ।

मेरी तो नहीं तनती हैं, नसें ! तब तो कहीं कोई स्त्रियाँ यह तो निश्चित ही कह दे- ‘नामर्द है साला !’ निश्चित ही अधिकतर नारी-पात्र मुझे ‘नामर्द’ की उपाधि देंगे !! अन्यथा, तब क्या यह कहा जाएगा कि उनके टाइट नसें देखकर उनकी भी खुजलाहट शुरू हो गयी ! मेनका ने ही विश्वामित्र की तपस्या भंग की थी और इंद्र का अहिल्या के प्रति आसक्त होना उनकी कामुकता और सुंदरता के कारण था। स्त्रियाँ कुँवारी रहने की ठान ले, तो सभी समस्याओं का निदान संभव है। चूँकि आग तो दोनों तरफ लगी रहती है । किन्नर बन्धु व थर्ड जेंडर तब कितने ही ऐसी निराशा में होंगे क्या ?

क्या हमेशा से पुरुषों की ही नसें तनती हैं, एकान्तवासी महिलाएं ‘हिस्टिरिया’ रोगग्रस्त क्यों हो जाया करती हैं ? इतना ही नहीं, दो महिला के आपस में ब्रा के स्ट्रैप देखकर ऐसा भी तो हो सकता है कि ये तनने-तनाने के फेर में ऐसी महिला-द्वय ‘लेस्बियन’ हो जाय !! पुरुष ‘गे’ तो होते ही है !!!

क्या आपको मालूम है — माँ जब बेटी होती है तो दहेज़ के विरुद्ध लड़ती हैं और माँ बनने पर बेटे के लिए दहेज़ लेने के प्रति कटिबद्ध रहती हैं !
आपका सवाल तो वाजिब है, किन्तु आपने कइयों को शक के दायरे में रखकर ‘सब धान बाईस पसेरी’ कहावत को जबरिया लागू की हैं । सीता ‘राम’ की पत्नी ही क्यों हुई ? कोई आई.ए.एस. या ‘मातबर’ दामाद ही क्यों करना चाहता है ? कोई सुन्दर लड़की कुरूप व्यक्ति से क्यों नहीं शादी करनी चाहती ? ‘लिव-इन रिलेशनशिप’ क्या है ? सनी लियोन तो अब धनी है, फिर उनकी द्वारा ‘ब्लू फिल्म’ क्यों ? हिंदी फिल्म ‘डर्टी पिक्चर’ या ‘बेगम जान’ में विद्या बालन के रोल को हम महज़ कलाकारिता ही क्यों समझे ? हिंदी फिल्म ‘पार्च्ड’ में स्तन दिखाती उस अभिनेत्री के बारे में क्या कहेंगी, जो कि हिंदी फिल्म ‘माउंटेन मैन’ में दशरथ माँझी की पत्नी फगुनिया बनकर सुर्खियाँ बटोरी थी । अब भी इसे आप कलाकारिता ही कहेंगी या धन प्राप्ति के नुस्खे ! ‘चोली के पीछे क्या है, चुनरी के नीचे….’ नामक फ़िल्मी गीत की गायिका पहले एक महिला भी है !
मैंने ऐसे परिवार को भी देखा है, जो अर्थाभाव और आवास की कमी के शिकार हैं, जहाँ माता-पिता एक ऊँचे चौकी (गरीब का पलंग) पर सो रहे होते हैं और उनके जवान होते बच्चे जगह की कमी के कारण उस चौकी के नीचे बिस्तर लगाकर सोते हैं । ऐसे बच्चे माँ-बाप के कृत्य से अवगत होते ही होंगे ! है न ! ओशो ने कामाध्ययन को लिए यहाँ तक कहा था– 12 वर्ष तक के किशोर और किशोरी को शून्य वर्ष से ही एकसाथ रखा जाय, तो इन दोनों के अंदर गुप्त अंगों के प्रति झिझक और सभी तरह की यौन – समस्या या यौन – विकृतियाँ स्वतः दूर होती चली जाएंगी !
आप फेमिनिज्म-सोच की बात करते हैं, लेकिन तब आपकी यह सोच कहाँ चली जाती है, जब कोई प्रेमी ‘प्रेमिका’ के लिए ‘गदही’, ‘पगली’, ‘जानू’, ‘स्वीटु’, ‘बेबी’, ‘हनी’, ‘शहद’ इत्यादि उपनामों से संबोधित करते हैं । क्या इस समय फेमिनिज्म-सोच दिमाग से ‘डिलीट’ हो जाती है या फिर सिर्फ किसी के साथ ‘दुष्कर्म’ होने के बाद ‘सोशल-मीडिया’ में मुद्दे पे मुद्दे को उछालते हैं और शाम होते-होते ‘कैंडल-लाइट’ डिनर करने के लिए चले जाते हैं !! कन्याओं के ही शब्द होते हैं– फलाँ लड़के को मैंने मुर्गा बनाया, चूना लगाया आदि-आदि । शादी से पहले डेट पे जाना फख्त एक-दूसरे को जानना-समझना भर नहीं होती !
आपने ऐसे ऑफिस में काम करती कुछ महिला को जरूर देखी होंगी, जहाँ मर्द भरे पड़े हैं । अगर यहाँ मर्द हावी हैं, तो वैसे ऑफिस में जहाँ पुरुष कामगार की संख्या मात्र दो-एक है, किन्तु महिला कामगारों की संख्या बहुतायत हैं , तो प्रथम स्थिति में मर्द हावी होंगे और द्वितीय स्थिति में महिला हावी होंगी। बड़े घरों के पुरुष नौकर प्रायः मालकिनों से त्रस्त रहते हैं, हिंदी फिल्म ‘तलवार’ उत्तम उदाहरण है। अब भी आप कहेंगी कि सिर्फ पुरुषों की ही नसें तनती हैं !
आपने सही कहा मर्द को दर्द नहीं होता !! सही कहा आपने कि उन्हें दर्द नहीं होता है, यदि होता तो उन पर रेप होते हैं, वे भी बलात्कार के शिकार होते हैं, तब लेकिन वे चाहकर भी अपने परिवार को बताते हैं तो वह खुद दोषी ठहराये जाते हैं ! इसलिए तो मैंने ‘पुरुष आयोग’ के गठन की माँग कर रखा है ।
130 करोड़ की आबादी में मात्र दो बहनों को ही शुभकामनायें क्यों ? क्या पैरा-ओलिंपिक खिलाड़ी बहनों को भूल गए ? यह तो सिर्फ वैसे ही है, जैसे 130 करोड़ में मात्र 84 ही ‘पद्म अवार्ड’ के योग्य हैं, यही न ?? छोड़िये मैं भी कहाँ आ गया, तो क्या आपने अभी तक ‘इंडियन बैडमिंटन ओपन सीरीज’ में सिंधु के संग खुशियाँ मनायी या नहीं ! बावजूद उनसे हारी ‘केरोलिना’ भी महिला है, भले ही वो इस देश की नहीं है, पर क्या फ़र्क पड़ता है, आखिरकार वो भी महिला ही तो है !