उपन्यास अंश

इंसानियत –एक धर्म ( चतुर्थ भाग )

 

असलम ने सामने से आ रहे नायब दरोगा पाण्डेय जी को सलूट किया और उनसे कुछ कहने की इजाजत मांगी ।
पांडेयजी ने मुस्कुराते हुए बताया ” मुझे अस्पताल के अधिकारी ने बताया कि एक कोई मारपीट का मामला अस्पताल में इलाज के लिए आया है । मैं इसीकी जांच के लिए यहाँ आया हूँ । तुम यहाँ पहले से ही मौजूद हो तो तुम्हें जरुर इस केस के बारे  में कुछ जानकारी होगी । बताओ ! तुम इस केस के बारे में क्या बताना चाहते हो ? ”
असलम ने कहना शुरू किया ” साहब ! मैं भी रामनगर थाने से सम्बंधित पुलिस चौकी बिट न. ३ पर नायब
दरोगा आलम जी के साथ तैनात हूँ । आज भी हम लोग सूर्यास्त के बाद प्रतापगढ़ जानेवाले राजमार्ग पर शहर से बाहर गश्त पर थे । थोड़ी देर बाद दरोगा आलम ने एक जगह सुनसान जगह पर गाडी खड़ी करके हम लोगों को गाड़ियों के कागजात देखने का हुक्म सुना दिया । मेरे साथ सिपाही यादव और मुनीर भी थे । अँधेरा हो चुका था । हम लोग सड़क पर खड़े होकर आनेवाले वाहन का इंतजार कर रहे थे कि तभी गाड़ी की रोशनी देखकर हमने टॉर्च की रोशनी से उसे रुकने का ईशारा किया । यह एक कार थी और कार में यह महिला और इनके पति जो अभी अन्दर कमरे में सघन चिकत्सा कक्ष में भर्ती हैं बैठे हुए थे । ” कहने के बाद असलम एक पल को रुका । तभी पाण्डेय जी टोक पड़े ” फिर क्या हुआ ? इनकी यह हालत कैसे हो गयी ? ”
तब तक असलम अपना इरादा पक्का कर चुका था । उसने पाण्डेय जी को पूरी घटना ज्यों की त्यों सुना दी । तभी वहीँ करीब ही शांत बैठी राखी को अचानक जैसे कुछ होश आया हो आकर पाण्डेय जी से कहने लगी ” नहीं दरोगा जी ! ये भाईसाहब आपको पूरा सच नहीं बता रहे हैं । ये पता नहीं क्यों मुझे बचाने की कोशिश कर रहे हैं । दरअसल जब हमने गाड़ी रोकी मेरे पति इनसे बातचीत करने लगे थे । कागजात वगैरह देखने के दौरान दरोगा जिसका नाम अभी अभी इन्होने आलम बताया है मेरी तलाशी लेने के लिए कहने लगा । मेरे पति के ऐतराज करने के बाद भी वह दरोगा मुझे झाड़ियों की तरफ पकड़कर खींचने लगा । इस दौरान यह दोनों सिपाही फिर से सड़क पर खड़े हो गए थे ।
मेरे पति को कबाब में हड्डी बनता देख उस दरोगा ने एक सिपाही जो उसके साथ था मुझे उसका नाम नहीं मालूम उसे ईशारा किया और उससे बेखबर मेरे पति के सर पर उसने अपने डंडे का भरपूर वार किया । मेरे सामने ही मेरे पति को मारने के बाद उन्हें खून से नहाया देखकर वह बदमाश सिपाही भाग खड़ा हुआ ।
अपने पति को खून में नहाया देखकर मेरा खून खौल उठा था । अपने अपमान को तो मैं बरदाश्त करती रही थी लेकिन अपने पति का खून देखकर मैं जुनूनी हो गयी थी । वहीँ नजदीक ही पड़ी छड़ी उठाकर जो उस दरोगा की धुनाई शुरू की तो मुझे पता ही नहीं चला कि वह कब इस दुनिया को छोड़ कर जा चुका था । बस इतनी सी कहानी है । इन दोनों सिपाहियों ने तो हमें रोते बिलखते देख और हमारे पति की नाजुक हालत को महसूस करके हमारी मदद की । अपनी गाड़ी में डाल कर तुरंत हमें यहाँ अस्पताल ले आये और देखिये इनके पहचान से इनका इलाज भी शुरू हो गया । अब आप ही बताइए ! ऐसे फ़रिश्ते जैसे सिपाही भला कोई गुनाह कर सकते हैं ?  मैं आपको शपथ पूर्वक कहती हूँ कि मैंने जो कहा है वही सत्य है और इन भाईसाहब ने जो आपको बताया है वह आधा सच है । आप चाहें तो मुझे गिरफ्तार कर सकते हैं क्यूंकि मैं ही असली गुनाहगार हूँ । ”
दरोगा पाण्डेय दोनों की बातें ध्यान से सुनने के बाद कोई फैसला नहीं कर पा रहा था । दोनों की बातें सुनकर उसका दिमाग चकरघिन्नी की मानिंद घूम रहा था । उसे दोनों की ही कहानी पर यकिन नहीं हो रहा था ।
दोनों की कहानी पर सवालिया निशान उसके जेहन में उभर रहे थे और वह ख़ामोशी से उनका जवाब खोजने की कोशिश कर रहा था ।
असलम की कहानी भी उसके गले नहीं उतर रही थी । भला ऐसे कैसे हो सकता है कि कोई अपने सीनियर अधिकारी को सिर्फ इसलिए मार डाले कि वह किसी अनजान महिला को बेइज्जत करना चाहता था । राखी की कहानी भी उसे विश्वसनीय नहीं थी । वैसे शक करना और उसकी वजह तलाशना पुलिसवालों के प्रशिक्षण का एक अहम् हिस्सा होता है लेकिन यहाँ पांडे अनायास ही शक नहीं कर रहा था । उसका इस कहानी पर यकिन इसलिए नहीं हो रहा था क्यूंकि आज तक उसने पूर्व में ऐसी एक भी घटना के बारे में नहीं सुना था जब किसी सिपाही वो भी दुसरे धर्म का बिना किसी जान पहचान के उसका गुनाह किसी भले घर की महिला ने अपने सीर पर थोपना चाहा हो । वह भला झूठ बोल कर खुद को क्यों फंसाना चाह रही थी ? यह सवाल अनुत्तरित ही था ।
बहरहाल इनमें से मुजरिम कौन है यह तो तहकीकात से ही स्पष्ट हो पायेगा लेकिन उससे भी जरुरी कई काम अभी बाकि थे सो वह बिना देर किये अपने काम में जुट गया ।
उसने अपने उच्चाधिकारी को इस वारदात की पूरी जानकारी दी और फिर उनके निर्देशानुसार सिपाही असलम को अपने साथ लेकर घटना स्थल की तरफ रवाना हो गया ।
असलम को अपने साथ चलने के लिए कहते ही राखी ने उसका प्रतिरोध किया था लेकिन पाण्डेय जी ने यह कहकर समझा लिया था कि अभी तो हम सिर्फ आलम के मृत शरीर को उठाने जा रहे हैं । उसका शव बरामद होने के बाद ही कोई कानूनी प्रक्रिया शुरू होगी और यहाँ आपके पति की हालत अभी खतरे से बाहर नहीं है सो आपका यहाँ रहना निहायत ही जरुरी है । अभी तक आपके घरवाले भी नहीं पहुंचे हैं । वो कभी भी यहाँ पहुँच सकते हैं और ऐसे समय पर आपको यहाँ न पाकर उनका दुःख और बढ़ जायेगा ।

उनके जाते ही राखी सिसक कर रो पड़ी थी । अस्पताल के बड़े से बरामदे में वह अपने आपको बिलकुल अकेली और असहाय सी महसूस कर रही थी । उस मृतक दरोगा आलम के बारे में सोचकर ही उसकी मुखमुद्रा बदल गयी थी । उसका चेहरा सख्त और भावविहीन हो गया था जबकि सिपाही असलम उसे इंसान की शकल में कोई फ़रिश्ता ही नजर आ रहा था । वह नहीं चाहती थी कि ऐसे फ़रिश्ते को किसी भी तरह की कोई तकलीफ हो । वह उसके लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार थी । उसके लिए वह हर सम्भव क़ुरबानी देने के लिए तैयार थी । वह यह कल्पना करके ही काँप उठती थी कि यदि असलम की जगह कोई और सिपाही होता या फिर स्वयं असलम ही वह न करता जो उसने किया था तो ? तो क्या वह जिन्दा रह पाती ? उसके जेहन में विचारों के अंधड़ चल रहे थे और काफी सोचने समझने पर उसको अपने फैसले में कोई बुराई नजर नहीं आ रही थी । आखिर उसने दिल कड़ा करते हुए फैसला पूरी तरह निर्धारित कर लिया था और अब उसके चेहरे पर एक आत्मविश्वास व संतोष झलक रहा था । उसके आंसू जो सूख चुके थे ।

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।