कविता

राष्ट्र के वास्ते

कब तलक पानी बिलो, मक्खन बनाते रहोगे,
हिंसा पर, निंदा की मरहम लगाते रहोगे?
मर रहे हैं रोज सैनिक, वतन की हिफाजत में,
कब तलक थूक बिलो, मानवाधिकार से डराते रहोगे?
चलो कुछ कर दिखायें, अब वतन के वास्ते,
आतंक को मिटा दें, मुल्क की शान्ति के वास्ते।
पत्थरबाजों के हमदर्द, जो अमन के लुटेरे,
नक्सलियों को भी मिटा दें, राष्ट्र के वास्ते।
अ कीर्तिवर्धन