ग़ज़ल
दस्त बानर से’ वशर याद आया
मालदारी से’ गज़र याद आया |
जब पुरानी गली’ से था गुजरना
गुजरा’ वो वक्त मगर याद आया |
आधुनिक गाँव को’ देखा, गजब था
देखकर उसको’ शहर याद आया |
गाँव के राह में’ काँटे थे’’ बेहद
कार से रोड सफ़र याद आया |
वक्त की गति कभी’ बदली नहीं है
जल प्रलय धार मगर याद आया |
भटके’ भटके यूँ’ ही’ तो जीस्त कटती
क्यूँ उमर राहगुज़र याद आया |
मैं भटकता था यहाँ’ से वहाँ जब
क्यूँ मुझे मेरे’ वो’ घर याद आया |
कालीपद ‘प्रसाद’