ये मेरे अक्षर..!
सौरभ के नहीं ये अक्षर, मैले जीवन का है ।
धूलि-धूसरित होते हैं, ये अभाग्यों का है ।।
हंसी खुशी इसमें नहीं, ये सिर का बोझ है ।
पीड़ामय जीवगति में, अश्रुजल का वेज़ है ।।
रस,सरस,उल्लास इसमें,होता कहीं नहीं रे ।
कुचले-दीन-दुःखितों का, कारूणिक रूप अरे! ।।
वेदनामय गाथा है, उपेक्षित जिंदगी का ।
कुटिल तंत्र के जाल में, सिकुड़े इंसान का ।।
वास्तविकता के पथ में, ये हैं बढ़ते कदम ।
मनो दीक्षाभूमि में, इंसान का दर्शनम ।।