गीत
पाप किये हैं गर हमने तो,फल भी हमें भुगतना होगा ।
विष का घूँट घूँट गर जोड़ा तो मुझको ही मरना होगा ।
गर हमने निज हित की खातिर ,हरे पेड़ कुछ काटे होंगें ।
दूजो की खातिर राहों पर कंकड़ हमने पाटे होंगे ।
कड़क धूप में नग्न पाँव ,उन राहों पे भी चलना होगा ।
पाप कियें है गर………………………………………
बिन सोचे समझे हमने गर पाँव बढ़ाया है राहों पर ।
काँटो वाला पेड़ एक झटके में रोपा घर के बाहर ।
तो फिर दुनिया की निगाह में,पात्र हँसी का बनना होगा ।
पाप किये हैंं……………………………………….
गर हमने दूजो की खातिर आग जलायी अपने घर में ।
उल्टी हवा पा गयी वो बन बैठी दावानल पल भर में ।
निज ईर्ष्या की अग्निज्वाल में ,मुझको तिल तिल जलना होगा ।
पाप किये हैं……………..
कल आयेगा घोर बुढापा,आज जवानी की बहार है ।
सहना होगा हर मानव को ,समय चक्र का यह प्रहार है।
शशि सूरज तक ढल जाते हैं,हम सबको भी ढलना होगा ।
पाप किये हैं…………………..
©डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी