ग़ज़ल
आज दौलत के लिए माँ को सताता क्यों है,
माँ तेरी है तो निगाहें तू चुराता क्यों है।
जान देता था कभी मुझपे मेरे लख्ते जिगर,
आज हर बात पे तू माँ को रुलाता क्यों है।
मैंने ग़ुरबत में मुसीबत से तुझे पाला है,
ऐ मेरे लाल कहर मुझपे तू ढाता क्यों है।
वास्ते तेरे दुआ मैने किया शामो सहर,
इस तरह माँ को बता छोड़ के जाता क्यों है ।
तेरी खुशियों में तेरी माँ की दुआएँ शामिल ,
छोड़ के माँ को तू ये आँसू पिलाता क्यों है।
“शुभदा” बच्चों से यही कहती है ऐ मेरे लाल,
सारा पर काट कर ममता को उडाता क्यों है।
— शुभदा बाजपेई