राजनीति

किसानों को न्याय चाहिए

आजादी के बाद से आज तक देश में किसी की भी सरकार रही हो वह किसानों को सताने और उन्हें मौत के मुँह में ढकेलने से बाज नहीं आयी । फर्क सिर्फ इतना है कि वही पार्टी जब सत्ता में आती है तो वह सारे वादे और सारी बातें भूल जाती है जो विपक्ष में रहकर गला फाड़-फाड़कर चिल्लायी होती है । जनता समझती सब है । पर उसके पास जब कोई विकल्प नहीं होता तो वह क्या करे ? आखिर उसे लोकतंत्र भी बचाना है । आप सोचिये जिस देश में विकास की इतनी-इतनी डींगें हाँकी जा रही हैं इन 70 सालों में किसान का कितना विकास हुआ । सन् 1947-48 में जन्मा किसान जितना भूखा तब था, उतना ही आज भी । बल्कि यों कहें कि उसकी आर्थिक -सामाजिक और मानसिक स्थिति पहले से कहीं ज्यादा खराब हो चुकी है ।

उसकी इस भयावह स्थिति की पहली जिम्मेदार कांग्रेस सरकार है जो अभी तीन साल पहले तक किसानों को मारने का हर औजार तैयार करती रही। पं0 जवाहरलाल नेहरू और इन्दिरा गाँधी ने पूरे देश में कर्ज का ऐसा जाल बुना कि किसान उसी में फँसा छटपटाता रहे । साहूकारों से मुक्ति के नाम पर सरकार ने बस उसे अपने पाले में कर लिया और उसका भक्षण करना शुरू कर दिया। विश्वनाथ प्रताप सिंह ने कर्जमाफी की लालच देकर एक गंदी सियासत की नींव रख दी । किसान को एक नये भयावह रास्ते पर उतार दिया । किसान को मजबूत करने के बजाय उसे लालच के दलदल में धकेलने का कुचक्र रचा गया। लगभग सभी सियासी दलों ने कर्जमाफी को अपने घोषणा पत्र में शामिल किया। कांग्रेस ने तो भाजपा को चुनौती दे डाली थी कि वह जनता को ठग रही है और किसानों का कर्जमाफ करने की उसकी हिम्मत नहीं । उधर प्रधानमंत्री उत्तर प्रदेश में चुनाव प्रचार के दौरान माइक पर वादे पर वादा कर रहे थे कि उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार आयी तो किसानों का पूरा कर्ज माफ़।

मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले में जो घटित हुआ वह किसी भी देश और समाज के लिए डूब मरने के समान है । हुआ यों कि मध्यप्रदेश में फसलों के उचित दाम और अन्य माँगों को लेकर किसान आन्दोलित हो उठे । धीरे – धीरे करके भीड़ बेकाबू होने लगी, जिसको नियंत्रित करने के लिए पुलिस ने सीधे गोलियाँ चला दीं और 5 किसानों की मौत हो गयी । शिवराज सिंह चौहान की भाजपा सरकार से पहले शायद ही किसी और सरकार ने किसानों के साथ ऐसा बुंरा बर्ताव किया हो । मध्यप्रदेश सरकार की बेशर्मी की तब और हद हो जाती जब वह पहले किसानों पर गोली चलवाती है । फिर जाँच के आदेश देती है और मृतक किसानों के परिवार वालों को महज 5-10 लाख का मुआवजा देकर मामले को रफा-दफा कर देना चाहती है ।

इस सबसे किसान आन्दोलन और उग्र होता जा रहा है। मृतकों की लाशों को लेकर किसानों ने रास्ता जाम कर दिया । वहाँ के डी एम के साथ जमकर हाथापाई हुई। विपक्ष और आन्दोलनकारी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के इस्तीफे की माँग पर अड़े हैं । उनकी यह भी माँग है मृतकों के परिवार वालों को 1 करोड़ से कम का मुआवजा मान्य नहीं है । साथ ही किसानों की जो भी माँगें हैं उन्हें तत्काल पूरा होना चाहिए ।

मध्यप्रदेश ही क्यों महाराष्ट्र में भी फसलों के उचित दाम और कर्जामाफी को लेकर हंगामा मचा हुआ है । सड़कों पर हजारों लीटर दूध फेंक दिया गया । रोजमर्रा की इस्तेमाल की चीजों और फलों-सब्जियों की आपूर्ति को बाधित किया गया है। किसानों का यह प्रदर्शन अगर शीघ्रता से न रोका गया तो अभी तो यह कुछ ही प्रान्तों तक सीमित है लेकिन आगे पूरे देश में फैल सकता है । केन्द्र सहित जिन- जिन प्रान्तों में भाजपा की सरकारें है वहाँ आये दिन कुछ न कुछ अप्रिय घटनाएँ घट रही है ।

किसान संगठन आये दिन उत्तर प्रदेश में भी जगह – जगह विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। तकरीबन 20-25 दिन पहले एक किसान संगठन ने दिन भर सुलतानपुर के पुलिस कप्तान के दफ्तर का घेराव कर रखा था । किसानों के धैर्य की जितनी परीक्षा यह सरकार ले रही है उतनी कभी किसी ने नहीं ली है । स्वामीनाथन आयोग के सुझाव के अनुसार किसानों को ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य‘ के अलावा कम से कम 50 प्रतिशत ‘लाभकारी मूल्य‘ देने की बात कही गयी थी, जिससे किसान अभी महरूम है ।

आज की सबसे बड़ी समस्या किसानों के लिए यह है कि ‘वास्तविक लागत मूल्य‘ और ‘निर्धारित लागत मूल्य ‘में बहुत अंतर है । जिसकी वजह से उसे ‘समर्थन मूल्य‘ नहीं मिल रहा। इस प्रंकार किसानों रकी मूलभूत जरूरतों को दरकिनार करना कितना अन्यायपूर्ण है । रासायनिक खादों का मूल्य हाल ही में 300 से बढ़कर 1100 रूपये तो 100 रूपये में मिलने वाला कीटनाशक 400 रूपये का हो गया है । खेती दिनों-दिन घाटे का सौदा हो गयी है। इस खेती को घाटे से उबारने के लिए हर सरकार पल्ला झाड़ लेती है । यह सरकार पिछले तीन साल से कहती आ रही है कि वह पाँच साल में किसानों की आय दो गुनी कर देगी । पर सवाल है कैसे ?

चौतरफा किसान के पेट पर लात मारी जा रही है । ‘‘किसान विकास पत्र” सहित तमाम छोटी बचतों पर ब्याज में भारी कटौती कर दी गयी । जो रकम कभी 6 साल से पहले दूनी हो जाती थी अब वह 8 साल में भी दूनी न हो पायेगी । किसान विकास पत्र पर ही नहीं तमाम जमा योजनाओं पर भी ब्याज दर घटा दी गयी है। इन योजनाओं का सीधा असर किसान पर पड रहा है।

इधर मौसम भी किसानों का साथ नहीं दे रहा । समय पर बारिश नहीं होती । या सूखे से फसल नष्ट हो जा रही है। सरकार का ‘आपदा – प्रबंधन विभाग’ फाइल में बन-बिगड़ रहा है । यह बात हमारे देश के लिए कितनी चिंताजनक है । किसानों की आत्महत्याओं में लगातार इजाफा हो रहा है । आँकडों के अनुसार साल 2014-15 में 5650 किसानों ने आत्महत्या की तो 2015-16 में बढ़कर यह संख्या 8 हजार से कहीं अधिक हो गयी । महाराष्ट्र में गत वर्ष 3 हजार से भी ज्यादा किसानों ने आत्महत्या की । सर्वेक्षण करने से पता चला है कि तीन – चौथाई आत्महत्याओं का कारण बैंक कर्ज है । बैंक कर्ज के मामले में कोई भी सरकार चाहे वह वी पी सिंह की सरकार रही हो या कांग्रेस की या आज की योगी सरकार ही क्यों न हो उतनी ईमानदार नहीं जितने का दिखावा करती आ रही है । योगी सरकार की ओर से भी किसानों को दिया जाने वाला कर्ज अभी मूर्तरूप में नही आया । दूसरी तरफ अभी तक बैंको को जो निर्देष मिले है उसके अनुसार वही किसान लाभान्वित होगे जो मार्च 2016 तक किसान कार्ड में बकायेदार होगे । उसके अनुसार फिर ईमानदार और मेहनत किसानों को बड़ा झटका लग सकता है ।आगे चलकर नादिहन्दा किसानो की बड़ी तादात उभर सकती है और बैकिग – अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है ।

— डॉ डी एम मिश्र

 

*डॉ. डी एम मिश्र

उ0प्र0 के सुलतानपुर जनपद के एक छोटे से गाँव मरखापुर में एक मध्यम वर्गीय किसान परिवार में जन्म । शिक्षा -पीएच डी,ज्‍योतिषरत्‍न। गाजियाबाद के एक पोस्ट ग्रेजुएट कालेज में कुछ समय तक अघ्यापन । पुनश्च बैंक में सेवा और वरिष्ठ -प्रबंघक के पद से कार्यमुक्त । प्रकाशित साहित्य - देश की प्रतिष्ठित पत्र- पत्रिकाओं में 500 से अधिक गीत, ग़ज़ल, कविता व लेख प्रकाशित । साथ ही कविता की छः और गजल की पांच पुस्तकें प्रकाशित, ग़ज़ल एकादश का संपादन। गजल संग्रह '- आईना -दर-आईना ,वो पता ढूॅढे हमारा , लेकिन सवाल टेढ़ा है , काफ़ी चर्चित। पुरस्कार - सम्मान ----- जायसी पंचशती सम्मान अवधी अकादमी से 1995, दीपशिखा सम्मान 1996, रश्मिरथी सम्मान 2005, भारती-भूषण सम्मान 2007, भारत-भारती संस्थान का - लोक रत्न पुरस्कार 2011, प्रेमा देवी त्रिभुवन अग्रहरि मेमोरियल ट्रस्ट अमेठी प्रशस्ति -प़त्र 2015, उर्दू अदब का - फ़िराक़ गोरखुपरी एवार्ड 2017, यू पी प्रेस क्लब का -सृजन सम्मान 2017, शहीद वीर अब्दुल हमीद एसोसियेशन द्वारा सम्मान 2018, साहित्यिक संघ वाराणसी का सेवक साहित्यश्री सम्मान 2019 आदि । अन्य साहित्यिक उपलब्धियाँ राष्ट्रीय स्तर के कुछ प्रमुख संकलनों में भी मेरी रचनाओं ( गीत, ग़ज़ल, कविता, लेख आदि ) को स्थान मिला है । जैसे -- भष्टाचार के विरूद्ध, प्राची की ओर , दृष्टिकोण , शब्द प्रवाह , पंख तितलियों के, माँ की पुकार, बखेडापुर, वाणी- विनयांजलि , शामियाना , एक तू ही, आलोचना नही है यह, परम्परा के पडाव पर गाँव, अजमल: अदब, अदीब और आदमी, युगांत के कवि त्रिलोचन, कथाकार अब्दुल बिस्मिल्ला: मूल्यांकन के विविध आयाम, हिन्दी काव्य के विविध रंग, समकालीन हिन्दी गजलकार एक अध्ययन खण्ड तीन- हिंदी ग़ज़ल की परम्परा सं हरे राम समीप , हिंदी ग़ज़ल का आत्मसंघर्ष, सं सुशील कुमार, ग़ज़ल सप्तक सं राम निहाल गुंजन आदि संकलनों में शामिल । अन्य - आकाशवाणी, दूरदर्शन, आजतक, ईटीवी , न्यूज 18 इंडिया आदि चैनलों पर अनेक कार्यक्रम प्रसारित। अखिल भारतीय कवि-सम्मेलनों, मुशायरों व गोष्ठियों में सक्रिय सहभागिता। सम्पर्क -604 सिविल लाइन, निकट राणाप्रताप पी. जी. कालेज, सुलतानपुर एवं ए - 1427 /14, इंदिरानगर, लखनऊ । मोबाइल नं. 09415074318, 07985934703 ई मेल - [email protected], [email protected]