“चौमासा बारिश से होता”
सावन सूखा बीत न जाये।
नभ की गागर रीत न जाये।।
कृषक-श्रमिक भी थे चिन्ताकुल।
धान बिना बारिश थे व्याकुल।।
रूठ न जाये कहीं विधाता।
डर था सबको यही सताता।।
लेकिन बादल है घिर आया।
घटाटोप अंधियारा छाया।।
अम्बुआझार चली पुरवायी।
शायद बारिस की रुत आयी।।
बिजली कड़की, बादल गरजा।
सूरज का दिल भी है लरजा।।
मोटी-मोटी बुन्दियाँ आयी।
लोगों के मन को अति भायी।।
पहली बारिश को पा करके।
नहा रहे बालक जी भरके।।
चौमासा बारिश से होता।
खेतीहर फसलों को बोता।।
वर्षा प्रतिदिन जल बरसाना।
बारिश मत धोखा दे जाना।।
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(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)