बीज
एक बीज
जो अंकुरित हुआ
मेरे अंदर
संभाला
पोषित किया
मैंने उसको
संवारा ,दुलारा
सुबह, शाम ,रात ,दोपहर
बूंद-बूंद पिलाई
मैंने उसको
आज वो नव अंकुर
छायादार हो गया है
उसकी गोदी में
सिर रखकर
मैं सुकून की सांस
ले रही थी
स्वपन देखा था एक
आज सार्थकता मिली
बूंद बूंद जो पिलाई थी
उसको
आंसू नहीं टपकने देता मेरा
छूकर उसे एहसास होता है
खुद का
मैं दोबारा अल्हड़पन में
आ गई हूं
मेरी परछाई हुबहू मैं
मैंने देखा एहसास
जीवन का
मैं और मेरी बेटी