कविता

बारिशें

वो बारिशें अब कहाँ मयस्सर हैं,
जिनमें नादान शरारतें होती थी।
छतरी की छांव तले भी,
भीगने की कवायदें होती थी।

सर्दी जुकाम की परवाह किसे थी,
जब बादलों से मोहब्बतें होती थी।
पानी की हर बूंद के लिये,
घर घर में इबादतें होती थी।

खेतों के दिलों में आसमां से इश्क़ उमड़ता था ,
ये बूंदें ख़ुदा की इनायतें होती थी।
वो बारिशें कहां मयस्सर हैं,
जिनमें नादान शरारतें होती थी।

विनोद दवे

नाम = विनोदकुमारदवे परिचय = एक कविता संग्रह 'अच्छे दिनों के इंतज़ार में' सृजनलोक प्रकाशन से प्रकाशित। अध्यापन के क्षेत्र में कार्यरत। विनोद कुमार दवे 206 बड़ी ब्रह्मपुरी मुकाम पोस्ट=भाटून्द तहसील =बाली जिला= पाली राजस्थान 306707 मोबाइल=9166280718 ईमेल = davevinod14@gmail.com