कृपाण घनाक्षरी [अंत्यानुप्रास ]
कृपाण अंत्यानुप्रास , छ्न्द गेयता विकाश, यति गति हो प्रवाह, आठ चौगुना विवेक।
वर्ण वर्ण घनाक्षरी, कवित्त चित्र चाल से, अंत गाल गुरु लघु, भाव भावना प्रत्येक।
अनुप्रास पाँच पुत्र, छेक वृत्य श्रुत्य अंत्य, संग में लाटानुप्रास , छ्न्द अलंकार नेक।
शृंगार अंत्यानुप्रास , चार चाँद दिख गया, दामिनी कड़क उठी, स्वर व्यंजना [व्यंजन] अनेक ।
— राजकिशोर मिश्र ‘राज’ प्रतापगढी