गीत : भारत देश कहाँ
चूम लिये फांसी का फंदा,भगतसिंह,सुख,राज,जहाँ ।
इंकलाब की बोलो वाला,मेरा भारत देश कहाँ ।
वो प्यारा भारत देश कहाँ,
……………
अंग्रेजो का महल ढहाया,वो दीवानी नारे थे ।
भारत को जीने वाले वह,माँ भारति के प्यारे थे ।
किधर गया वह देश प्रेम अब,पनप रहा क्यों बैर यहाँ
इंकलाब के बोलो वाला,मेरा भारत देश कहाँ ।
वो मेरा प्यारा… वो मेरा भारत….
रंग चढ़ा हर ओर बसंती,बाकी सब कुछ फीका था ।
स्वाभिमान क्या होता है ये इस माटी से सीखा था ।
करने लगे अब स्वयं का सौदा,बदला क्यों परिवेश यहाँ ।
इंकलाब के बोलो वाला……
गंगा,जमुना की निर्मलता,की खाते सौगंध सभी ।
सदा साँच के पथ पे चलते,बढ़ा यहाँ कब झूठ कभी ।
मन दूषित तन आलस फैला,मेहनत का अवशेष कहाँ ।
इंकलाब के बोलो वाला मेरा भारत देश कहाँ ।
वह मेरा न्यारा देश कहाँ…वह मेरा प्यार देश कहाँ..
— नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष”
श्रोत्रिय निवास बयाना