सज़ा
कभी कभी सोचता हूँ
कितना हँसती थी तू
अब तेरी उदासी की वजह
मैं तो नही
चहक उठती थी जो
सुबह की पहली किरण के साथ
आज तेरी तन्हाईयों की वजह
मैं तो नही
आखिर क्या कसूर था तेरा
जो मैं आया तेरी जिंदगी में
खुशियों से दामन भरा रहता था जिसका
आज वो गमगीन रहती है
कहीं इस तन्हा जीवन की सज़ा
मैं तो नही
तू चाहती
तो भूल जाती मुझे
औरों के साथ खुशियां बांटकर
पर मेरे साथ रोना तूने स्वीकार किया
तुझे इन आंसुओं में भी जो पल पल मिलता है
कहीं वो मजा.. मैं तो नही
#महेश