तरही ग़ज़ल !
हम तो हैं परदेस में, देश में निकला होगा चाँद।
कल्पना के चलचित्र सा,सोम्य सा सजा होगा चाँद।
कटती है निशा जब भी,इन नयनो की झिलमिल में;
अँधेरें छटेंगे फिर ये ,जगमगाता कहता होगा चाँद।
तुम संग बीते थे जो पल,यादें बन रह गए वो अब;
तारों की बारात लिए,मुस्काता दिखता होगा चाँद।
माना मिलता नहीं मुकम्मिल, सब को जहां जगत में;
उम्मीद की लौ सा मगर,जुगनुओं संग मिलता होगा चाँद।
मन जब विचलित होकर,नभ को देखता है कभी;
कायनात को शीतलता देता;कुछ संदेस देता होगा चाँद।