गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

नसीब में यूँ कभी न होता
नश्तर दिल में चुभा न होता

हमें दुश्मनी नहीं न आती
हाय ! कि वह बेवफ़ा न होता

किसी ने बुरा किया न होता
दिल भी इतना दुखा न होता

घातक घटना घटी क्योंकर
दिलवर मेरा चला न होता

दिल है मेरा कितना नाज़ुक
नासूर अभी हरा न होता

नफ़रत है अब रोशनी से
शब ने मुझको छला न होता

ज़िंदगी होती ‘ रश्मि ‘ सुहानी
अगर वो मुझसे जुदा न होता

— रवि रश्मि ‘अनुभूति’
मुंबई