मूर्ति !
आज दीनदयाल अपने साथ अपने पोते को भी ले गया था विधालय में आज छुट्टी थी ।
रंग बिरंगी मूर्तियां बनाने का काम ज़ोरो पर था, सेठ ने दुकान के पीछे थोड़ी सी जगह दे रखी थी कारिगरों को मूर्तियां बनाने के लिए! बंटी सब ध्यान से देख रहा था, फिर अचानक से बोला बाबा जी ; आप कितनी मेहनत से मूर्तियां बनाते हो पर आजकल तो लोग महंगे महंगे सजावट के सामान खरीदते हैं। साधारण सी मूर्ति कौन खरीदेगा।
दीनदयाल मुस्कुरा दिए और प्यार से बोले नहीं बंटी यह भी सब खरीदेंगे …तुम देखना।
जाने दीनदयाल को लगता था कि आस्था मंहगे शोक पर भारी पड़ जाती है !