ग़ज़ल
इन आंसुओं का मोल चुकाया न जाएगा
अब हमसे भी कोई गीत गाया न जाएगा ।
जी चाहता है अश्क ये पलकों से चुरा लूं
इस दर्द ए दिल का बोझ उठाया न जाएगा।
सुन दर्द तुम्हें ही नहीँ हमने भी ज़ख़्म खाए
दिल चीर के बस हमसे दिखाया न जाएगा।
अहसास हो तुम्हें ये मुमकिन तो है हुज़ूर
कभी अपनी जुबां से दर्द बताया न जाएगा ।
अब नींद कहां हमको यूं होने हैं रतजगे
आंखों को आज हमसे सुलाया न जाएगा ।
हम सोचते हैं ‘जानिब’ तुम्हारा दर्द बांट लें
सुनो ये दर्द तेरा हमसे भुलाया न जाएगा ।
— पावनी दीक्षित ‘जानिब’
बहुत सुन्दर !